न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) क्या है | What is Judicial Review in Hindi


विधायिका और कार्यपालिका हमारे देश की ये दो तरह के कार्यों के व्यापक अधिकार क्षेत्र हैं और इन्ही के साथ भारत की एक स्वतंत्र न्यायपालिका भी है। जब हम बात स्वतंत्र न्यायपालिका की करते हैं तो यहाँ इसकी शक्तियों की बात होती है जो कि विधायिका और कार्यपालिका से ऊपर मानी जाती है | न्यायपालिका की इन शक्तियों में न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) एक महत्वपूर्ण शक्ति का उल्लेख हमारे संविधान में किया गया है | आज हम इस लेख में  न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) क्या है | What is Judicial Review in Hindi  के बारे में जानेंगे साथ ही ये भी देखेंगे न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) का  क्या अर्थ होता है |

इस पोर्टल के माध्यम से यहाँ न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) क्या है | What is Judicial Review in Hindi इसके बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य संविधान की महत्वपूर्ण बातों और उसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से संविधान के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

पॉक्सो एक्ट क्या है



न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) क्या है (What is Judicial Review)

जैसा की हमने आपको बताया न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति न्यायालयों की एक महत्वपूर्ण शक्ति है। प्रोफेसर कार्विन के अनुसार न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति न्यायालयों की वह शक्ति है जिसके माध्यम से वे विधायका द्वारा पारित विधियों, संविधियों एवं अधिनियम की संवैधानिकता का परीक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता हैं न्यायालय द्वारा ऐसी किसी भी विधि के प्रवर्तन से इनकार भी किया जा सकता है जो संविधान के उपबंधों के विपरीत हो ।

आइये देखते है व्यापक तरीके से न्यायिक पुनरावलोकन अथवा न्यायिक पुनर्विलोकन अथवा न्यायिक पुनरीक्षा (Judicial review) क्या है यह उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके अन्तर्गत कार्यकारिणी के कार्यों (तथा कभी-कभी विधायिका के कार्यों) की न्यायपालिका द्वारा पुनरीक्षा (review) की जाती है । अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि न्यायिक पुनरावलोकन से तात्पर्य न्यायालय की उस शक्ति से है जिस शक्ति के बल पर वह विधायिका द्वारा बनाये कानूनों, कार्यपालिका द्वारा जारी किये गये आदेशों तथा प्रशासन द्वारा किये गये कार्यों की जांच करती है कि वह संविधान के मूल ढांचें के अनुरूप हैं या नहीं।

CPC Bare Act in Hindi 

न्यायिक समीक्षा किस देश से लिया गया है

जब हम यह जानने की प्रयास करते है की न्यायिक पुनरावलोकन या न्यायिक समीक्षा किस देश से लिया गया है या इसकी  उत्पति कहाँ से हुई | तब हम पाते हैं कि सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका से न्यायिक पुनरावलोकन या न्यायिक समीक्षा की उत्पति मानी जाती है किन्तु पिनाँक एवं स्मिथ ने इसकी उत्पति ब्रिटेन से मानी है। फिर भी अधिकतर विद्वान् कहते हैं सबसे पहले 1803 मे अमेरिका के मुख्य न्यायधीश मार्शन ने मार्बरी बनाम मेडिसन नामक विख्यात वाद मे प्रथम बार न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति की प्रस्थापना की थी

“भारतीय संविधान में भी न्यायिक पुनरावलोकन सिद्धान्त को संयुक्त राज्य अमेरिका के आधार पर समाहित किया गया है लेकिन इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं हुआ है, परन्तु इसका आधार है- अनु॰ 13 (2), अनु॰ 32, 226, 131, 243 और न्यायधीशों द्वारा संविधान के संरक्षण की शपथ। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 राज्य के विरुद्ध नागरिकों को मूल अधिकारों के संरक्षण की गारण्टी देता है। यदि राज्य द्वारा कोई ऐसी विधि बनाई जाती है जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है तो न्यायालय उसको शून्य घोषित कर सकता है। इसके द्वारा न्यायालय विधियों की संवैधानिकता की जाँच करता है। इसीलिए अनुच्छेद 13 को ‘मूल अधिकारों का प्रहरी’ भी कहा जाता है।“

संविधान में अनुच्छेद 13, 32 व 226 के द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति दी गई है। कुछ प्रावधानों को न्यायिक पुनर्विलोकन से बाहर भी रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय –

कॉपीराइट अधिनियम (Copyright Act) क्या हैं

मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार

मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि अनुच्छेद 368 का खंड (4) विधिसम्मत नहीं (invalid) है क्योंकि यह न्यायिक पुनर्विलोकन को समाप्त करने के लिए पारित किया गया था। न्यायिक पुनर्विलोकन का सिद्धांत संविधान का आधारभूत लक्षण है। अत एव 42वें संशोधन के उक्त प्रावधान को असंवैधानिक बताते हुए निर्णय दिया गया कि संसद् संविधान के मौलिक ढांचें को नहीं बदल सकता। वामन राव बनाम भारत संघ (1981) वाद में न्यायलय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आधारभूत लक्षण का सिद्धान्त 24-4-1973 को, अर्थात् केशवानंद भारती के निर्णय सुनाये जाने की तिथि, के बाद पारित होने वाले संविधान संशोधन अधिनियमों पर लागू होगा।

Court Marriage (कोर्ट मैरिज) Process

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 राज्य के विरुद्ध नागरिकों को मूल अधिकारों के संरक्षण की गारण्टी देता है। यदि राज्य द्वारा कोई ऐसी विधि बनाई जाती है जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है तो न्यायालय उसको शून्य घोषित कर सकता है। इसके द्वारा न्यायालय विधियों की संवैधानिकता की जाँच करता है। इसीलिए अनुच्छेद 13 को ‘मूल अधिकारों का प्रहरी’ भी कहा जाता है।

अनुच्छेद 13 (1) :- इसमें कहा गया है कि भारतीय संविधान के लागू होने के ठीक पहले भारत में प्रचलित सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जहाँ तक कि वे संविधान भाग तीन के उपबंधों से असंगत हैं।

अनुच्छेद 13 (2) :- राज्य ऐसी कोई विधि नहीँ बनायेगा जो मूल अधिकारों को छीनती है। इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।

अनुच्छेद 13 (3) :- विधि के अंतर्गत भारत में विधि के समान कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, उपनियम, अधिसूचना, रूढ़ि प्रथा आते हैं अर्थात इनमें से किसी के भी द्वारा मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो उन्हें न्यायालय में रिट के द्वारा चुनौती दी जा सकती है।

अनुच्छेद 13 (4) :- यह खण्ड “संविधान के 24 वें संशोधन” द्वारा जोड़ा गया है। इसके अनुसार इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किये गए संविधान संशोधन को लागू नहीं होगी।

Child Adoption Process in Hindi

“यह अनुच्छेद सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका को अपनी-अपनी हद में रहने को बाध्य करता है ताकि यह एक दूसरे के क्षेत्रों में हस्तक्षेप न करें।“

भारतीय संविधान सभा का गठन कब हुआ था

न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता में अंतर

न्यायिक समीक्षा का अर्थ है- एक कानून या आदेश की समीक्षा और वैधता निर्धारित करने के लिए न्यायपालिका की शक्ति को प्रर्दशित करना। दूसरी ओर, न्यायिक सक्रियता इस बात को संदर्भित करती है कि न्यायिक शक्ति का उपयोग मुखर और लागू होने से क्या इसका लाभ बडे पैमाने पर सामान्य लोगों और समाज को मिला पा रहा है कि नहीं।

न्यायिक सक्रियता, न्यायिक निर्णय लेने के एक ऐसे दर्शन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जहां न्यायाधीश संविधानवाद की बजाय सार्वजनिक नीति के बारे में अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट करते हैं। भारत में सक्रियता से कुछ मामलों इस प्रकार हैं:

संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची क्या है

  • गोलकनाथ मामले में जहां सुप्रीम कोर्ट ने यह घोषणा की थी कि भाग 3 में निहित मौलिक अधिकार अपरिवर्तनीय हैं और उन्हें सुधारा नहीं जा सकता है।
  • केशवानंद भारती मामले में जहां सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना का सिद्धांत पेश किया, यानी संसद के पास संविधान के मूल ढांचे में फेरबदल किए बिना संशोधन करने की शक्ति है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 2 जी घोटाले की सीबीआई जांच में एक पर्यवेक्षी भूमिका निभायी है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका क्या है

अभी हाल में ही अध्यादेश राज को हतोत्साहित करने वाले एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा की शक्ति में विस्तार करते हुए स्पष्ट किया कि न्यायपालिका इस बात की जाँच कर सकती है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अध्यादेश प्रख्यापित करने के पीछे कहीं कोई अप्रत्यक्ष मकसद तो नहीं है?

संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) क्या है

  • संविधान पीठ ने यह फैसला बिहार में अध्यादेश के ज़रिये शिक्षकों की भर्ती से जुड़े मामले में सुनाया है| विदित हो कि बिहार की पूर्व सरकार द्वारा सात बार अध्यादेश जारी करके राज्य में शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन बाद की सरकार ने उस अध्यादेश को जारी करने से इन्कार कर दिया| इससे अध्यादेश के आधार पर बहाल किये गए शिक्षकों की नियुक्ति खत्म हो गई
  • गौरतलब है कि इस निर्णय में, केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा एक ही अध्यादेश को बारबार जारी करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर सर्वोच्च न्यायालय ने गहरी नाराज़गी जताते हुए कहा कि किसी अध्यादेश को दोबारा जारी करना संविधान से धोखा है|
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अध्यादेश लागू करने को लेकर संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति और अनुच्छेद 213 के तहत राज्यपाल की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर नहीं है|
  • पीठ के अनुसार, अध्यादेश में भी वही शक्तियाँ निहित हैं, जो विधायिका द्वारा पारित किसी कानून में होती हैं, साथ ही किसी भी अध्यादेश को कानून बनाने के लिये विधेयक के रूप में संसद या विधानसभा में पेश किया जाना संविधान का घोर उल्लंघन है|
  • इसी क्रम में संविधान पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अध्यादेश समाप्त होने या दोबारा जारी होने पर इसके लाभार्थियों को कोई कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता है|

भारतीय संविधान में कितने भाग हैं

न्यायिक समीक्षा की शक्ति उच्च न्यायालयों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 में समाहित है, वहीं उच्चतम न्यायालय की न्यायिक समीक्षा की शक्तियाँ अनुच्छेद 32 और 136 में दी गई है |

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 क्या है

उपरोक्त वर्णन से आपको आज न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) क्या है | What is Judicial Review in Hindi  इसके बारे में जानकारी हो गई होगी | न्यायिक समीक्षा (पुनरावलोकन) के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, यदि फिर भी इससे सम्बन्धित या अन्य किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप  हमें  कमेंट  बॉक्स  के  माध्यम  से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है | इसको अपने मित्रो के साथ शेयर जरूर करें |

Juvenile Justice Act 2000 in Hindi

यदि आप अपने सवाल का उत्तर प्राइवेट चाहते है तो आप अपना सवाल कांटेक्ट फॉर्म के माध्यम से पूछें |
Leave a Comment