आईपीसी धारा 390 क्या है | IPC Section 390 in Hindi – विवरण (लूट क्या है )


आईपीसी धारा 390 क्या है

आज हम आपके लिए इस पेज पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 390 की जानकारी लेकर आये है | यहाँ हम आपको बताएँगे  कि भारतीय दंड सहिता (IPC) की धारा 390 किस प्रकार से परिभाषित की गई है और इसका क्या अर्थ है ? भारतीय दंड संहिता यानि कि आईपीसी (IPC)  की धारा 390 क्या है, इसके बारे में आप यहाँ जानेंगे |

लूट क्या है

इस पोर्टल के माध्यम से यहाँ धारा 390 क्या बताती है ? इसके बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य धाराओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

आईपीसी धारा 392 क्या है



IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा) की धारा 390 के अनुसार :-

लूट

सब प्रकार की लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है ।

चोरी कब लूट है–चोरी “लूट है, यदि उस चोरी को करने के लिए, या उस चोरी के करने में या उस चोरी द्वारा अभिप्राप्त सम्पत्ति को ले जाने या ले जाने का प्रयत्न करने में, अपराधी उस उद्देश्य से स्वेच्छया किसी व्यक्ति की मृत्यु, या उपहति या उसका सदोष अवरोध या तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल सदोष अवरोध का भय कारित करता या कारित करने का प्रयत्न करता है ।

उद्दापन कब लूट है–उद्दापन “लूट है, यदि अपराधी वह उद्दापन करते समय भय में डाले गए व्यक्ति की उपस्थिति में है, और उस व्यक्ति को स्वयं उसका या किसी अन्य व्यक्ति की तत्काल मृत्यु या तत्काल उपहति या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालकर वह उद्दापन करता है और इस प्रकार भय में डालकर इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को उद्दापन की जाने वाली चीज उसी समय और वहां ही परिदत्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है।

स्पष्टीकरण

अपराधी का उपस्थित होना कहा जाता है, यदि वह उस अन्य व्यक्ति को तत्काल मृत्यु के तत्काल उपहति के, या तत्काल सदोष अवरोध के भय में डालने के लिए पर्याप्त रूप से निकट हो ।

दृष्टांत

(क) क, य को दबोच लेता है, और य के कपड़े में से य का धन और आभूषण य की सम्मति के बिना कपटपूर्वक निकाल लेता है | यहां, क ने चोरी की है और वह चोरी करने के लिए स्वेच्छया य का सदोष अवरोध कारित करता है । इसलिए क ने लूट की है |

(ख) क, य को राजमार्ग पर मिलता है, एक पिस्तौल दिखलाता है और य की थैली मांगता है । परिणामस्वरूप य अपनी थैली दे देता है । यहां क ने य को तत्काल उपचति का भय दिखलाकर थैली उद्यापित की है और उद्यापन करते समय वह उसकी उपस्थिति में है | अतः क ने लूट की है।

(ग) क राजमार्ग पर य और य के शिशु से मिलता है | क उस शिशु को पकल लेता है और यह धमकी देता है कि यदि य उसको अपनी थैली परिदत्त नहीं कर देता, तो वह उस शिशु को कगार से नीचे फेंक देगा | परिणामस्वरूप य अपनी थैली परिदत्त कर देता है । यहां क ने य को यह भय कारित करके कि वळ उस शिशु को, जो वहां उपस्थित है, तत्काल उपचति करेगा, य से उसकी थैली उदापित की है | इसलिए क ने य को लूटा है।

(घ) क, य से पळ कठ कर सम्पत्ति अभिप्राप्त करता है कि “तुम्हारा शिशु मेंरी टोली के ठाथों में हैं, यदि तुम हमारे पास दस हजार रुपया नहीं भेज दोगे, तो वह मार डाला जाएगा ।” यठ उद्यापन है, और इसी रूप में दण्डनीय है; किन्तु यळ लूट नहीं है, जब तक कि य को उसके शिशु की तत्काल मृत्यु के भय में न डाला जाए |

आईपीसी धारा 394 क्या है 

Section 390 –    “ Robbery ”–

In all robbery there is either theft or extortion.

When theft is robbery.—Theft is “robbery” if, in order to the committing of the theft, or in committing the theft, or in carrying away or attempting to carry away property obtained by the theft, the offender, for that end, voluntarily causes or attempts to cause to any person death or hurt or wrongful restraint, or fear of instant death or of instant hurt, or of instant wrongful restraint.

When extortion is robbery.—Extortion is “robbery” if the offend­er, at the time of committing the extortion, is in the presence of the person put in fear, and commits the extortion by putting that person in fear of instant death, of instant hurt, or of instant wrongful restraint to that person or to some other person, and, by so putting in fear, induces the person so put in fear then and there to deliver up the thing extorted. Explanation.—The offender is said to be present if he is suffi­ciently near to put the other person in fear of instant death, of instant hurt, or of instant wrongful restraint.

Illustrations

(a) A holds Z down and fraudulently takes Z’s money and jewels from Z’s clothes without Z’s consent. Here A has committed theft, and in order to the committing of that theft, has voluntarily caused wrongful restraint to Z. A has therefore committed rob­bery.

(b) A meets Z on the high roads, shows a pistol, and demands Z’s purse. Z in consequence, surrenders his purse. Here A has extort­ed the purse from Z by putting him in fear of instant hurt, and being at the time of committing the extortion in his presence. A has therefore committed robbery.

(c) A meets Z and Z’s child on the high road. A takes the child and threatens to fling it down a precipice, unless Z delivers his purse. Z, in consequence delivers his purse. Here A has extorted the purse from Z, by causing Z to be in fear of instant hurt to the child who is there present. A has therefore committed robbery on Z.

(d) A obtains property from Z by saying—“Your child is in the hands of my gang, and will be put to death unless you send us ten thousand rupees”. This is extortion, and punishable as such; but it is not robbery, unless Z is put in fear of the instant death of his child.

आईपीसी धारा 395 क्या है

मित्रों उपरोक्त वर्णन से आपको आज भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 390 के बारे में जानकारी हो गई होगी | कैसे इस धारा को लागू किया जायेगा ?  लूट (Robbery) के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, यदि फिर भी इस धारा से सम्बन्धित या अन्य धाराओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप  हमें  कमेंट  बॉक्स  के  माध्यम  से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है | इसको अपने मित्रो के साथ शेयर जरूर करें |

आईपीसी धारा 397 क्या है


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