साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 क्या है
आज हम आपके लिए इस पेज पर साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 114 की जानकारी लेकर आये है | यहाँ हम आपको बताएँगे कि साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 114 किस प्रकार से परिभाषित की गई है और इसका क्या अर्थ है ? साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 क्या है, इसके बारे में आप यहाँ जानेंगे |
न्यायालय किन्हीं तथ्यों का अस्तित्व उपधारित कर सकेगा
इस पोर्टल के माध्यम से यहाँ साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 क्या बताती है ? इसके बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य धाराओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |
[Indian Evidence Act Sec. 114 in Hindi]
साक्ष्य अधिनियम धारा 45 क्या है
Indian Evidence Act (साक्ष्य अधिनियम) की धारा 114 के अनुसार :-
न्यायालय किन्हीं तथ्यों का अस्तित्व उपधारित कर सकेगा
न्यायालय ऐसे किसी तथ्य का अस्तित्व उपधारित कर सकेगा जिसका घटित होना उस विशिष्ट मामले के तथ्यों के सम्बन्ध में प्राकृतिक घटनाओं, मानवीय आचरण तथा लोक और प्राइवेट कारबार के सामान्य अनुक्रम को ध्यान में रखते हुए वह सम्भाव्य समझता है।
दृष्टांत न्यायालय उपधारित कर सकेगा
(क) कि चुराए हुए माल पर जिस मनुष्य का चोरी के शीघ्र उपरान्त कब्जा है, जब तक कि वह अपने कब्जे का कारण न बता सके, या तो वह चोर है या उसने माल को चुराया हुआ जानते हुए प्राप्त किया है;
(ख) कि सह-अपराधी विश्वसनीयता के अयोग्य है जब तक कि तात्त्विक विशिष्टियों में उसकी सम्पुष्टि नहीं होती;
(ग) कि कोई प्रतिगृहीत या पृष्ठांकित बिनिमयपत्र समुचित प्रतिफल के लिए प्रतिगृहीत या पृष्ठांकित किया गया था;
(घ) कि ऐसी कोई चीज या चीजों की दशा अब भी अस्तित्व में है, जिसका उतनी कालावधि से जितनी में ऐसी चीजें या चीजों की दशाएं प्रायः अस्तित्व-शून्य हो जाती हैं, लचुतर कालावधि में अस्तित्व में होना दर्शित किया गया है।
(ङ) कि न्यायिक और पदीय कार्य नियमित रूप से संपादित किए गए हैं।
(च) कि विशिष्ट मामलों में कारबार के सामान्य अनुक्रम का अनुसरण किया गया है;
(छ) कि यदि वह साक्ष्य जो पेश किया जा सकता था और पेश नहीं किया गया है, पेश किया जाता, तो उस व्यक्ति के अननुकूल होता, जो उसका विधारण किए हए है।
(ज) कि यदि कोई मनुष्य ऐसे किसी प्रश्न का उत्तर देने से इन्कार करता है, जिसका उत्तर देने के लिए वह विधि द्वारा विवश नहीं है, तो उत्तर, यदि वह दिया जाता, उसके अननुकूल होता;
(झ) कि जब किसी बाध्यता का सृजन करने वाली दस्तावेज बाध्यताधारी के हाथ में है, तब उस बाध्यता का उन्मोचन हो चुका है।
किन्तु न्यायालय यह विचार करने में कि ऐसे सूत्र उसके समक्ष के विशिष्ट मामले को लागू होते हैं या नहीं, निम्नलिखित प्रकार के तथ्यों का भी ध्यान रखेगा
दृष्टांत (क) के बारे में किसी दुकानदार के पास उसके गल्ले में कोई चिह्नित रुपया उसके चुराए जाने के शीघ्र पश्चात् है, और वह उसके कब्जे का कारण विनिर्दिष्टतः नहीं बता सकता किन्तु अपने कारवार के अनुक्रम में वह रुपया लगातार प्राप्त कर रहा है।
दृष्टांत (ख) के बारे में एक अत्यन्त ऊंचे शील का व्यक्ति, क किसी मशीनरी को ठीक-ठीक लगाने में किसी उपेक्षापूर्वक कार्य द्वारा किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के लिए विचारित है। वैसा ही अच्छे शील का व्यक्ति, ख, जिसने मशीनरी लगाने के उस काम में भाग लिया था, ब्यौरेवार वर्णन करता है कि क्या-क्या किया गया था, और क की और स्वयं अपनी असावधानी स्वीकृत और स्पष्ट करता है।
दृष्टांत (ब) के बारे में- कोई अपराध कोई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है । अपराधियों में से तीन क, ख और ग घटनास्थल पर पकड़े जाते हैं और एक दूसरे से अलग रखे जाते है । अपराध का विवरण उनमें से हर एक ऐसा देता है जो घ को आलिप्त करता है और ये विवरण एक दूसरे को किसी ऐसी रीति में सम्पुष्ट करते हैं जिससे उनमें यह अति अनधिसम्भाब्य हो जाता है कि उन्होंने इसके पूर्व मिलकर कोई योजना बनाई थी;
दृष्टांत (ग) के बारे में किसी विनिमयपत्र का लेखीवाल, क व्यापरी था। प्रतिगृहीता ख पूर्णतः क के असर के अधीन एक युवक और नासमझ ब्यक्ति था;
दृष्टांत (घ) के बारे में यह साबित किया गया है कि कोई नदी अमुक मार्ग में पांच वर्ष पूर्व बहती थी, किन्तु यह ज्ञात है कि उस समय से ऐसी बाढ़ें आई हैं जो उसके मार्ग को परिवर्तित कर सकती थीं;
दृष्टांत (ङ) के बारे में कोई न्यायिक कार्य, जिसकी नियमितता प्रश्नगत है, असाधारण परिस्थितियों में किया गया था;
दृष्टांत (च) के बारे में प्रश्न यह है कि क्या कोई प्रत्र प्राप्त हुआ था। उसका डाक में डाला जाना दर्शित किया गया है, किन्तु डाक के सामान्य अनुक्रम में उपद्रवों के कारण विघ्न पड़ा था;
दृष्टांत (छ) के बारे में कोई मनुष्य किसी ऐसी दस्तावेज को पेश करने से इन्कार करता है जिसका असर किसी अल्प महत्व की ऐसी संविदा पर पड़ता है, जिसके आधार पर उसके विरुद्ध वाद लाया गया है, किन्तु जो उसके कुटुम्ब की भावनाओं और ख्याति को भी क्षति पहुंचा सकती है;
दृष्टांत (ज) के बारे में कोई मनुष्य किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करता है जिसका उत्तर देने के लिए वह विधि द्वारा विवश नहीं है, किन्तु उसका उत्तर उसे उस विषय से असंसक्त विषयों में हानि पहुंचा सकता है, जिसके सम्बन्ध में वह पूछा गया है।
दृष्टांत (झ) के बारे में कोई बन्धपत्र बाध्यताधारी के कब्जे में है किन्तु मामले की परिस्थितियां ऐसी हैं कि हो सकता है कि उसने उसे चुराया हो।
साक्ष्य अधिनियम धारा 32 क्या है
According to Indian Evidence Act Section 114 – “Court may presume existence of certain facts”–
The Court may presume the existence of any fact which it thinks likely to have happened, regard being had to the common course of natural events, human conduct and public and private business, in their relation to the facts of the particular case.
Illustrations
The Court may presume ––
(a) that a man who is in possession of stolen goods soon after the theft is either the thief or has received the goods knowing them to be stolen, unless he can account for his possession;
(b) that an accomplice is unworthy of credit, unless he is corroborated in material particulars;
(c) that a bill of exchange, accepted or endorsed, was accepted or endorsed for good consideration;
(d) that a thing or state of things which has been shown to be in existence within a period shorter than that within which such things or states of things usually cease to exist, is still in existence;
(e) that judicial and official acts have been regularly performed;
(f) that the common course of business has been followed in particular cases;
(g) that evidence which could be and is not produced would, if produced, be unfavourable to the person who withholds it;
(h) that if a man refuses to answer a question which he is not compelled to answer by law, the answer, if given, would be unfavourable to him;
(i) that when a document creating an obligation is in the hands of the obligor, the obligation has been discharged.
But the Court shall also have regard to such facts as the following, in considering whether such maxims do or do not apply to the particular case before it: ––
as to illustration (a) –– a shop-keeper has in his bill a marked rupee soon after it was stolen, and cannot account for its possession specifically, but is continually receiving rupees in the course of his business; as to illustration (b) ––A, a person of the highest character is tried for causing a man’s death by an act of negligence in arranging certain machinery. B, a person of equally good character, who also took part in the arrangement, describes precisely what was done, and admits and explains the common carelessness of A and himself;
as to illustration (b) –– a crime is committed by several persons. A, B and C, three of the criminals, are captured on the spot and kept apart from each other. Each gives an account of the crime implicating D, and the accounts corroborate each other in such a manner as to render previous concert highly improbable;
as to illustration (c) –– A, the drawer of a bill of exchange, was a man of business. B, the acceptor, was a young and ignorant person, completely under A’s influence;
as to illustration (d) –– it is proved that a river ran in a certain course five years ago, but it is known that there have been floods since that time which might change its course;
as to illustration (e) –– a judicial act, the regularity of which is in question, was performed under exceptional circumstances;
as to illustration (f) –– the question is, whether a letter was received. It is shown to have been posted, but the usual course of the post was interrupted by disturbances;
as to illustration (g) –– a man refuses to produce a document which would bear on a contract of small importance on which he is sued, but which might also injure the feelings and reputation of his family;
as to illustration (h) –– a man refuses to answer a question which he is not compelled by law to answer, but the answer to it might cause loss to him in matters unconnected with the matter in relation to which it is asked;
as to illustration (i) –– a bond is in possession of the obligor, but the circumstances of the case are such that he may have stolen it.
साक्ष्य अधिनियम धारा 17 क्या है
मित्रों उपरोक्त वर्णन से आपको आज साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 114 के बारे में जानकारी हो गई होगी | कैसे इस धारा को लागू किया जायेगा ? इन सब के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, यदि फिर भी इस धारा से सम्बन्धित या अन्य धाराओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है | इसको अपने मित्रो के साथ शेयर जरूर करें |
साक्ष्य अधिनियम धारा 68 क्या है