दोस्तों क्या कभी आपने सोचा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम से पहले विवाहित महिलाओं के पास जब कभी परिवार द्वारा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया जाता था तब उस दशा में उनको अपना बचाव करने के लिए क्या कानूनी प्रावधान मौजूद था जी हां आप सही है केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क के तहत ही वो अपनी शिकायत को दर्ज करा सकती थीं ।
इसी को संदर्भित करते हुए और इसकी आवश्यकता को देखते हुए घरेलू हिंसा (अधिनियम) कानून का पदार्पण हुआ इसमें प्रतिवादियों की गिरफ्तारी नही होती है लेकिन इसके अंतर्गत पीडि़त महिला को भरण-पोषण, निवास एवं बच्चों के लिये अस्थायी संरक्षण की सुविधा को दिलाने का प्रावधान किया गया है।
आज इस पेज पर घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 क्या है | Domestic Violence Act 2005 के बारे में क्या प्रावधान बताये गए हैं, इनके बारे में पूर्ण रूप से चर्चा की गई है | साथ ही घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की सभी धाराओं के बारे में भी विस्तार से बताया गया है? इसको भी यहाँ जानेंगे, और इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य महत्वपूर्ण अधिनियम के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य अधिनियम के बारे में भी विस्तार से जानकारी ले सकते हैं |
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की आवश्यकता क्यों
जैसा कि हमने ऊपर आपको बताया कि पहले विवाहित महिलाओं के पास जब कभी परिवार द्वारा मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया जाता था तब उस दशा में उनको अपना बचाव करने के लिए क्या कानूनी प्रावधान मौजूद था जी हां आप सही है केवल भारतीय दंड संहिता की धारा 498-क के तहत ही वो अपनी शिकायत को दर्ज करा सकती थीं ।
इसको दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में वर्ष 1983 में हुए संशोधन के बाद इस धारा 498-क को जोड़ा गया। आपको बता दें कि यह एक गैर-जमानती धारा है, जिसके अंतर्गत प्रतिवादियों की गिरफ्तारी तो हो सकती है पर पीडि़त महिला को भरण-पोषण अथवा निवास जैसी सुविधा दिये जाने का प्रावधान शामिल नहीं है। इसी को संदर्भित करते हुए और इसकी आवश्यकता को देखते हुए घरेलू हिंसा (अधिनियम) कानून 2005 का पदार्पण हुआ
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घरेलू हिंसा क्या है
घरेलू हिंसा अर्थात् कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं बच्चे (18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका) के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन के संकट, आर्थिक क्षति और ऐसी क्षति जो असहनीय हो तथा जिससे महिला व बच्चे को दुःख एवं अपमान सहना पड़े, इन सभी को घरेलू हिंसा के दायरे में शामिल किया जाता है। इसमें हम निम्न प्रकार के अवयव सम्मिलित कर सकते हैं |
- शारीरिक (मार-पीट, थप्पड़ मारना, डाँटना, दाँत काटना, ठोकर मारना, अंग को नुक्सान पहुंचाने संबंधी, स्वास्थ्य को हानि)
- मानसिक ( चरित्र, आचरण पर दोष, अपमानित, लड़का न होने पर प्रताड़ित, नौकरी छोड़ने या करने के लिए दबाव, आत्महत्या का डर देना,घर से बाहर निकाल देना)
- शाब्दिक या भावनात्मक (गाली-गलोच, अपमानित)
- लैंगिक ( बलात्कार, जबरदस्ती संबंध बनाना, अश्लील सामग्री या साहित्य देखने को मजबूर करना,अपमानित लैंगिक व्यवहार, बालकों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार)
- आर्थिक ( दहेज़ की मांग, महंगी वस्तु की मांग, सम्पति की मांग, आपको या आपके बच्चे के खर्च के लिए आर्थिक सहायता न देना ,रोजगार न करने देना या मुश्किल पैदा करना ,आय-वेतन आपसे ले लेना, संपत्ति से बेदखल करना)
पीड़ित कौन है
एकल या संयुक्त परिवार की किसी भी महिला (माँ, बेटी(अपनी,सौतेली,गोद ली), बहन, विधवा औरत, कुँवारी लड़की, यहां तक कि लिव इन संबंधों या अवैध शादी संबंधों में रहने वाली महिला चाहे वो एक ही घर में रह रहे हों या नहीं , कार्यस्थल पर काम करती महिला) बच्चे (गोद लिए, सौतेले, रिश्तेदारों के, संयुक्त परिवार से किसी भी संबंध के, स्कूल वगैरह के संबंध में)
दोषी कौन है
पीड़ा देने वाला (महिला/बच्चे के संबंध में कोई भी पुरुष या महिला जैसे पति, पिता, बेटा, भाई, संयुक्त परिवार का कोई भी पुरुष सदस्य या महिला सदस्य सास, ननद, जेठानी, देवरानी भी हो सकता/सकती है)
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 क्या है
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में स्थापित, इस अधिनियम से महिलाओं की सुरक्षा, घरेलू रिश्तों में महिलाओं को हिंसा से बचाने के उद्देश्य से सांसद द्वारा बनाया गया एक कानून है। इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण का अधिनियम, 2005 भी है | इस कानून में निहित सभी प्रावधानों का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिये यह समझना ज़रूरी है कि पीड़ित कौन होता है जिसके बारे में हमने आपको ऊपर ही बताया है |
यह ऐसा कानून है जिसमे शिकायत करते ही पीड़ित को उस अन्याय की व्यवस्था से बाहर निकाल कर सुरक्षित किया जाता है, जब तक केस में सच-झूठ के आधार पर दीर्घकालिक न्यायपूर्ण फैसला न हो जाए? इस कानून को भारत की संसद द्वारा 13 सितम्बर 2005 में स्वीकृत और 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया |
यहाँ पर समझने वाली एक महत्वपूर्ण बात ये है कि इस कानून का उद्देश्य महिलाओं को रिश्तदारों के दुर्व्यवहार से संरक्षित करना है, इसलिये यह समझना भी ज़रूरी है कि घरेलू रिश्तेदारी या संबंध क्या है? ‘घरेलू रिश्तेदारी’ का आशय किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच के उन संबंधों से है, जिसमें वे या तो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या पहले कभी रह चुके होते हैं।
इस पर सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act, 2005) की पुनः व्याख्या की | न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ (D.Y. Chandrachud) एवं हेमंत गुप्ता (Hemant Gupta) की पीठ ने पानीपत सत्र न्यायाधीश के निर्णय की पुष्टि करते हुए घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की पुनः व्याख्या की है।
इस वाद के अनुसार दो भाई अपने पैतृक घर में संयुक्त परिवार के रूप में अलग-अलग मंजिलों पर रहते थे। लेकिन बड़े भाई की मृत्यु के बाद मृतक का छोटा भाई अपनी भाभी को घर में नहीं रहने दे रहा था। सत्र न्यायाधीश ने मृतक के भाई को मृतक की विधवा पत्नी और पुत्र के लिये सहायता राशि प्रदान करने का आदेश दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family-HUF) के संदर्भ में ‘संबंध’ को निम्नलिखित आधार पर परिभाषित किया है-
Rental Agreement Format in Hindi
- जब दो व्यक्ति विवाह करके साथ रहे चुके हों या फिर साथ रह रहे हों;
- जब दो व्यक्तियों के संबंध की प्रकृति विवाह की तरह हो और वे एक ही घर में रह रहे हों;
- कोई दत्तक सदस्य या अन्य सदस्य जो संयुक्त परिवार की भाँति रह रहा हो; उक्त लोगों के बीच जो आपसी सहयोग और तालमेल स्थापित होता है उसे ही संबंध कहते हैं।
न्यायालय ने साझा घर को भी परिभाषित करते हुए कहा कि जहाँ संयुक्त परिवार निवास करता है, प्रतिवादी (विधवा स्त्री) भी उस परिवार का सदस्य है, भले ही उसके पास घर में कोई अधिकार, उपनाम हो या न हो, वह साझा/संयुक्त परिवार का हिस्सा है।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 कब लागू / पारित किया गया
2005 से पहले घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं के पास आपराधिक मामला दर्ज़ करने का अधिकार था | ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A के अंतर्गत कार्यवाही होती थी | 2005 में ‘घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं का संरक्षण अधिनियम’ पारित हुआ जिसमें कई नए तरीके के अधिकार महिलाओं को दिए गए | घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act, 2005) को भारत की संसद द्वारा 13 सितम्बर 2005 में स्वीकृत / पारित और 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया |
घरेलू हिंसा अधिनियम में शिकायत कैसे करें
जब भी इस अधिनियम के तहत शिकायत की बात आती है तो हमें जानना चाइये कि इस घरेलू हिंसा अधिनियम में फॉर्म 1 में दी गई रिपोर्ट अनुसार हम शिकायत कर सकते है | उसमें पीड़िता/पीड़ित का नाम, आयु, पता, फोन नंबर, बच्चों की जानकारी,घरेलु हिंसा की घटना के बारे में पूरी जानकारी तथा संबंधित दस्तावेज़ लगा कर, उस पर हस्ताक्षर करने के बाद यह प्रार्थना पत्र प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को जमा करवानी पड़ती है जिसकी एक-एक प्रति अपने पास, स्थानीय पुलिस थाने, सुरक्षा अधिकारी या सेवा सहायक को भी देनी पड़ती है।
मजिस्ट्रेट, पीड़ित के घर की, कार्यस्थल की स्थानीय सीमा या दोषी व्यक्ति के घर की/दफ्तर की स्थानीय सीमा से संबंधित हो सकता है या जहां हिंसा हुई उस क्षेत्र की सीमा में भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। परन्तु संबंधित मजिस्ट्रेट कहीं के भी हों पर उनके आदेश पूरे भारत की सीमा के अंदर हर जगह मान्य होंगे ।
यह शिकायत पीड़ित/पीड़िता स्वयं, उसके संबंधी या पड़ोसी, राज्य द्वारा नियुक्त सुरक्षा अधिकारी, सेवा सहायक कोई भी इसकी शिकायत स्वयं संबंधित दफ्तर में जाकर, संबंधित दफ्तर या अधिकारी की ई.मेल, जारी किए गए फोन नंबर पर भी दे सकता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act, 2005)के अन्तर्गत प्रमुख कानूनी प्रावधान
1) धारा 4 : इस धारा केअनुसार पीड़ित न्याय के लिए पुलिस अधिकारी, मजिस्ट्रेट से अपने या दोषी के संबंधित क्षेत्र में शिकायत दर्ज कर सकता/सकती है।
2) धारा 5,6,7,9 : इस धारा के अनुसार पीड़ित को सरंक्षण का आदेश प्राप्त करने, सेवा सहायक की नियुक्ति, सरंक्षण अधिकारी की नियुक्ति, मुफ्त कानूनी सहायता संबधित अधिकारों की जानकारी मुहैया करवाई जाती है। और ये सब अपने दायित्व को अच्छी तरह निभाएंगे।
3) धारा 10 : इस धारा के अनुसार संबंधित अधिकारी मजिस्ट्रेट को आगे सूचित करेगा।
4) धारा 12 : इस धारा में मुआवजे या नुकसान का आवेदन करना बताया गया है ।
5) धारा 14,15 : इस धारा में मजिस्ट्रेट पीड़ित को सेवा सहायक की मदद के लिए निर्देश दिए गए हैं |
6) धारा 16 : इस धारा में बताया गया है कि पक्षकार चाहें तो कार्यवाही बंद कमरे में हो सकती है।
7) धारा 17-18 : इस धारा में पीड़ित को सांझी गृहस्थी में निवास का अधिकार
8) धारा 19 : इस धारा में स्थानीय थाने को पीड़ित और उसके बच्चे के सरंक्षण के लिए निवास या भुगतान का आदेश है।
9) धारा 20-22 : इस धारा में वित्तीय असंतोष की भरपाई का आदेश है।
10) धारा 21 : इस धारा में संतान के संबंध में या मिलने संबंधी बात कही गयी है
11) धारा 24 : इस धारा में पक्षकारों को आदेश की प्रति निःशुल्क देना
क्या वकीलों को अपने कार्यों का विज्ञापन देने की अनुमति है
मजिस्ट्रेट निम्न 5 अंतरिम आदेश दे सकते हैं :
- सरंक्षण (प्रोटैक्शन) आदेश
- अभिरक्षा (कस्टडी) आदेश
- निवास आदेश
- आर्थिक आदेश
- प्रतिकर (कम्पनसेटरी )आदेश
- सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति
- सलाहकार समिति बनाने के आदेश
काला कोट ही क्यों पहनते हैं वकील
घरेलू हिंसा अधिनियम IPC कानून की धारा 498 A से अलग
घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act, 2005), IPC की धारा 498 A से बिल्कुल अलग है क्योंकि यह पीड़ित के सरंक्षण को निश्चित करने का कानून है। जो दोषी को सजा नहीं देता परन्तु अगर वह दोषी इस अधिनियम के अन्तर्गत दिए गए आदेशों की अवमानना करता है तो पारिवारिक मामलों को अर्द्ध आपराधिक मामलों की संज्ञा देते हुए आगे की प्रकिया में दोषी पक्ष को गिरफ्तार किया जा सकता है या वसूली की जा सकती है। और अगर पीड़ित महिला भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक मुकदमे की याचिका दायर कर दे और दोष साबित हो जाए तो प्रतिवादी को अधिकतम 3 साल की जेल हो सकती है।
घरेलू हिंसा अधिनियम की क़ानूनी धाराएं | Domestic Violence Act Sections List in hindi
यहाँ आप जानेंगे कि घरेलू हिंसा अधिनियम | Domestic Violence Act 2005 में कौन सी धाराएं लगाई जाती है और इसमें क्या बताये गए हैं उन धाराओं के बारे में आपको जानकारी मिलेगी इन सबके बारे में आपको हमारे इस पोर्टल पर सभी प्रकार की जांनकारी मिलेगी |
PWDVA Act 2005 Full Form
आइये जानते हैं PWDVA की फुल फॉर्म क्या होती है इसे यानि PWDVA को Protection of Women from Domestic Violence Act कहते हैं इसे हिंदी में “घरेलू हिंसा अधिनियम 2005″ कहते हैं, ये PWDVA Act भारत के सभी नागरिकों पर लागू है। घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 में 5 अध्याय तथा कुल 37 धाराएं हैं।
शपथ पत्र (Affidavit) क्या होता है
1-संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
4-संरक्षण अधिकारी को जानकारी का दिया जाना और जानकारी देने वाले के दायित्व का अपवर्जन
5-पुलिस अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं और मजिस्ट्रेट के कर्त्तव्य
7-चिकित्सीय सुविधाओं के कर्त्तव्य
8-संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति
9-संरक्षण अधिकारियों के कर्तव्य और कृत्य
Domestic violence Act
16-कार्यवाहियों का बन्द कमरे में किया जाना
17-साझी गृहस्थी में निवास करने का अधिकार
Domestic violence Act
23-अन्तरिम और एकपक्षीय आदेश देने की शक्ति
24-न्यायालय को आदेश की प्रतियों का निःशुल्क दिया जाना
25-आदेशों की अवधि और उसमें परिवर्तन
26-अन्य वादों और विधिक कार्यवाहियों में अनुतोष
30-संरक्षण अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं के सदस्यों का लोक सेवक होना
Domestic violence Act
31-प्रत्यर्थी द्वारा संरक्षण आदेश के भंग के लिए शास्ति
33-संरक्षण अधिकारी द्वारा कर्तव्यों का निर्वहन न करने के लिए शास्ति
34-संरक्षण अधिकारी द्वारा किए अपराध का संज्ञान
35-सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण
36-अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना
37-केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति
एकतरफा तलाक (Contested Divorce) क्या है
Muje details dijiye koi domestic vailonce karke out of India Gaya ho to kya kare
Mera Husband mujhe mental PARESHAN KARTA H MERI 2 BETI H BUT USKI SAAS AUR MERA HUSBAND MUJHE LADKE K liye force karte h ,ab y chhej mere hath m nahi h but y log ganawr log hai.anpad type k hai ,,mejhe maarte nahi hai but menatal bahot pareshan karte hai ,Mere maa baap nahi hai unke liye bhi apsabad bolte hai,,
aap complain file kr sakte hain …
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