क़ानूनी शब्दावली का प्रयोग मुख्य रूप से न्यायालय में होता है, न्यायालयों के द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षाओ में इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, भारतीय कानून प्रणाली के अंतर्गत अनेक ऐसे शब्द होते है, जो दो अलग -अलग शब्द होते है, जिनका अर्थ भी अलग-अलग होता है, लेकिन दिखते समान ही है, वह लोग जिनका न्यायालय, अदालत आदि के संपर्क में नहीं रहते है, तथा जिनका इनसे सम्बन्ध नहीं होता है |
यहाँ पर आज आपको प्रमुख कानूनी शब्दावली | Important Legal Terms and Glossary के बारे में बताने का प्रयास करेंगे | आज के आर्टिकल में प्रमुख कानूनी शब्दावलीयो पर पूर्ण रूप से चर्चा की गई है | इस आर्टिकल में कई प्रकार के कानूनी शब्दों को समाहित किया है जिसको अक्सर हम कोर्ट में सुनते है , साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य महत्वपूर्ण लॉ से सम्बन्धित बातों को विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से उनके बारे में भी जानकारी ले सकते हैं |
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भारतीय कानून प्रणाली व्यवस्था से सम्बंधित अनेको शब्दों के विषय में वह लोग जल्द ही भ्रमित हो जाते है, जो क़ानूनी प्रकरण से दूर रहते है | बहुत से लोगो द्वारा इन शब्दों का जीवनपर्यन्त प्रयोग किया जाता है, लेकिन शब्द के सही अर्थ के विषय में जानकारी नहीं होती है, एक समान दिखने वाले शब्द जिनका अर्थ अलग- अलग हो, किसी वाक्य में प्रयोग करने पर भ्रम उत्पन्न करते है, कि कौन सा शब्द सही होगा, यह भ्रमित करने वाले शब्द होते है, इसलिए आपको “प्रमुख कानूनी शब्दावली, Important Legal Terms and Glossary in Hindi” इसके विषय में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई गयी है |
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कानूनी शब्दावली के मुख्य शब्द (Key Words in Legal Terminology)
बिल एवं अधिनियम (Bill & Act)
देश में नया कानून बनाने या पुराने कानून में बदलाव लाने की आवश्यकता होने की अवस्था में संशोधन के लिए संसद में यह प्रस्ताव बिल के रूप में रखा जाता है, यह पूर्ण क़ानूनी रूप से पारित नहीं हुआ होता है, एक प्रकार से बिल संसद संबंधी प्रणाली का शैशव काल या कच्चा क़ानूनी रूप होता है | यह बिल जब मान्य हो जाता है, तो अधिनियम का रूप ग्रहण कर लेता है | संसद में जब बिल को बहुमत प्राप्त हो जाती है, तब वह अधिनियम बन जाता है |
बिना बहुमत प्राप्त किये कोई बिल अधिनियम का रूप नहीं ले सकता है | बिल पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर तथा मोहर लगने के बाद प्रणाली के रूप में राज्य में पारित हो जाता है | बिल पारित होने के बाद अधिनियम कहलाता है । बिल का विकसित रूप अधिनियम होता है |
धारा एवं अनुच्छेद (Act &Article)
- धारा– संसद के द्वारा बनाये गए साधारण नियमो को धारा कहते है, जिसमे विषयो को अलग -अलग करने के लिए धारा नाम दिया गया है| धारा को अंग्रेजी में सेक्शन कहते है, धारा में उपधाराएँ भी सम्मिलित रहती है| धारा तथा अधिनियम में विशेष सम्बन्ध है अधिनियम के प्रयोग में धारा का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है, कुछ अधिनियम के अंतर्गत नियम तथा आदेश भी सम्मिलित होते है |
- अनुच्छेद- वर्तमान समय में कोई भी संविधान बिना अनुच्छेद के पूर्ण नहीं हो सकता है अनुच्छेद संविधान में पाए जाते है | संविधान अलग -अलग हिस्सों में विभाजित किया गया है जिसे अनुच्छेद कहते है, संविधान में अनुच्छेद 1 से लेकर 400 अनुच्छेद तक है |
जनपद न्यायालय एवं सत्र न्यायालय (District Court & Session court)
भारत देश में अधिकतर सभी न्यायालयों के बाहर जिला एवं सत्र न्यायालय लिखा रहता है। इसे जिला न्यायालय के नाम से भी जाना जाता है । ये दोनों न्यायालय एक नहीं हैं, लेकिन दोनों न्यायालय का मतलब अलग -अलग होता हैं, लेकिन दोनों न्यायालय में एक ही व्यक्ति होता है । सामान्यतः हम इन दोनों न्यायालय को एक ही मान सकते है|
- जनपद न्यायालय- किसी सिविल केस को सुनने वाली न्यायालय को जिला न्यायालय कहा जाता है, अर्थात जनपद के सबसे बड़े न्यायालय को सिविल केस की सुनवाई करने का अधिकार होता है |
- सत्र न्यायालय- सत्र न्यायालय के अंतर्गत आपराधिक केस की सुनवाई होती है, अर्थात सत्र न्यायालय जिले का सबसे बड़ा आपराधिक केसों को सुनने वाला न्यायालय होता है| जैसे भारतीय दंड अधिनियम की धारा 302 के तहत यदि किसी अपराधी पर केस चलाया जाता है, तो उसकी सुनवाई सत्र न्यायालय में होती है, क्योंकि सत्र न्यायालय के न्यायाधीश को ही मृत्यु दंड तथा आजीवन कारावास देने का अधिकार होता है |
सिविल जज, मजिस्ट्रेट और कार्य पालक मजिस्ट्रेट(Civil Judge, Magistrate& Executive Magistrate)
- सिविल जज- सिविल जज तथा मजिस्ट्रेट एक ही व्यक्ति होते है । केस आपराधिक है या सिविल, यह केस के आधार पर निर्धारित किया जाता है|जब सिविल केस की सुनवाई जिस जज के द्वारा होती है, उसे सिविल जज कहते हैं । सिविल जज दो श्रेणी में विभाजित होते है| प्रथम तथा द्वितीय , केसों को सुनने के अधिकार तथा आदेश सुनाने के अधिकार के आधार पर श्रेणी निर्धारित की गयी है| जिला जज से नीचे सिविल केसों की सुनवाई करने वाले जज को सिविल जज कहते है |
- मजिस्ट्रेट– आपराधिक केस की सुनवाई करने वाले जज को मजिस्ट्रेट कहते है। मजिस्ट्रेट और सिविल जज का निर्धारण केस की प्रकृति के आधार पर किया जाता है ।
- कार्यपालक मजिस्ट्रेट- यह कार्यपालिका का एक भाग होता है, तथा इसे सेमी ज्यूडिशियल पद भी कहते है, क्योंकि इनमे कुछ न्यायिक अधिकार और कर्तव्य भी रखते हैं ।
ज़मानती एवं दोषमुक्त (Bailable and Acquitted)
भारत देश में आपराधिक विधान में अपराधियों के प्रति उदारतापूर्वक व्यवहार करने की व्यवस्था कानून में की गयी है| ज़मानती और गैर-ज़मानती अपराधों को अलग -अलग विभाजित किया गया है, तथा अपराधियों को जमानत पर रिहा करने का भी विधान है । अधिकतर ऐसे केस होते है, जिनमे जमानती अपराधी को दोषमुक्त मान लिया जाता है तथा जमानत पर रिहा कर दिया जाता है|
जमानती- अपराधी व्यक्ति जिस पर केस चल रहा हो, तथा न्यायलय के द्वारा उस व्यक्ति को जमानत पर रिहा कर दिया गया हो, उसे जमानती व्यक्ति कहते है | केस समाप्ति पर अपराध सिद्ध होने की स्थिति में उसे दोबारा क़ानूनी हिरासत में ले लिया जाता है।
दोषमुक्ति- अपराधी व्यक्ति पर न्यायलय में चल रहे केस के अंतर्गत अपराध सिद्ध न होने की दशा में उसे सभी प्रकार के अपराधों से मुक्त कर दिया हो, उसे दोषमुक्त कहते है |
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संसद एवं सांसद (Parliament& Member of Parliament)
संसद- लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत भारत की राजनीतिक व्यवस्था के लिए विधान निर्माण का कार्य संसद के माध्यम से किया जाता है । राष्ट्रपति लोकसभा तथा राज्यसभा से मिलकर संसद बनती है, यह तीनों संसद के भाग है ।
सांसद- संसद के अंतर्गत लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्यों को सांसद कहते है, तथा सांसद में मतदाताओं के प्रतिनिधि को सांसद कहते है |
अपराधी और दोषसिद्ध (Criminal and Convicted)
अपराधी और दोष सिद्ध में भी अंतर होता है । भारत देश में लोगो की ऐसी धारणा है, किसी व्यक्ति पर एफआईआर (FIR) दर्ज होने के साथ ही उस व्यक्ति पर अपराध सिद्ध बाद में होता है, लेकिन उस व्यक्ति को दोषी मान लिया जाता है | जबकि भारत में अपराधी को दोषसिद्ध व्यक्ति मानने के लिए एक लंबी प्रक्रिया है | ज्यादातर भारतीय विचारण जैसी किसी चीज़ को जानते ही नहीं हैं ।
अपराधी-जिस व्यक्ति पर राज्य द्वारा किसी भी अपराध के तहत केस चल रहा हो, उसे अपराधी कहते है | भारत देश में अपराधी व्यक्ति को दोषसिद्ध या दोषमुक्त साबित होने के लिए लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, यहाँ के नागरिको को विचारण के विषय में जानकारी नही है |
दोषसिद्ध-जिस व्यक्ति पर अपराध लगाए जाने तथा किसी भी न्यायालय के द्वारा अपराध सिद्ध होने की दशा में दोषी घोषित कर दिया गया हो, तथा व्यक्ति को अपराधी मान कर न्यायलय के द्वारा दंड दिया जा चुका हो, उसे उसे दोषसिद्ध कहते है | राज्य पुलिस के द्वारा अपराध व्यक्ति पर लगाए जाते है तथा केस का विचारण होने के बाद अपराध न्यायालय के द्वारा निर्धारित किये जाते है| अपराध लगने से व्यक्ति दोषी नहीं होता है, अपराध सिद्ध होने के बाद व्यक्ति दोषी माना जाता है |
जमानती, गैर जमानती अपराध क्या है
नगर पालिका तथा नगर निगम (Municipality and Municipal Corporation)
नगर पालिका
नगर पालिका को न एक गांव तथा न एक बड़ा शहर मानकर केवक शहर माना गया है, एक व्यवस्थित नियम के तहत 20 हज़ार से अधिक आबादी वाले कस्बो तथा 2 लाख से कम आबादी के शहरों में नगर पालिका का निर्माण किया जाता है |
नगर निगम
5 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में नगर निगम का निर्माण किया जाता है | नगर निगम और नगर पालिका के नियम, कर्तव्य तथा अधिकार अलग – अलग बनाये गए है |
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शमनीय और गैर शमनीय (Compulsive and Non-Compulsive)
अपराधो को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है, पहला शमनीय और दूसरा गैर शमनीय, इस प्रकार है:-
शमनीय
जिन अपराधों को दंड प्रक्रिया अधिनियम के अंतर्गत मध्यस्ता की जा सके या हो सके उन अपराधों को शमनीय अपराध कहा जाता है। उदाहरण के लिए धारा 302 तथा धारा 376 आदि बहुत से केसो में हत्या होने की स्थिति में यह अपराध शमनीय मान लिया जाता है |
गैर शमनीय
जिन अपराधों की मध्यस्ता नहीं की जा सकती है, तथा जिसे न्यायालय के द्वारा न तो अपराध मुक्त किया जा सके तथा न ही अपराध सिद्ध किया जा सके,उसे गैर शमनीय अपराध कहते है |
संज्ञेय अपराध (Cognisable Offence) क्या है
आज के इस आर्टिकल में हमने आप को कानून के एक जैसे शब्द और उनके भिन्न – भिन्न अर्थ के बारे में विस्तार से जानकारी यहाँ इस पेज पर दी है अगर फिर भी आप के मन में इससे संबंधित कोई प्रश्न हैं तो कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं हम आप के द्वारा पूछे गए प्रश्नो का उत्तर देने का पूरा प्रयास करेंगे |
असंज्ञेय अपराध (Non Cognizable) क्या है