जमानती, गैर जमानती अपराध क्या है | Bailable, Non-Bailable Offence in Hindi


Bailable, Non-Bailable Offence

यदि हम अपराध की बात करे तो इसकी एक काफी लम्बी सूची है| हालाँकि कुछ लोग अपराध एक भावावेश में, आवेगमें, क्रोध में, बचाव में कर बैठते है | जबकि कुछ लोग अपनी अपराधी प्रवृत्ति, स्वभाव या संस्कारों के कारण अपने कृत्यों को जायज मानने वाले लोग योजनाबद्ध तरीके से अपराध करने के आदी हो जाते है और अपने धनबल, बाहुबल, पहुंच के कारण डरने के बजाय डराने में यकीन रखते है। हम यह कह सकते है, कि पहली श्रेणी के अपराधियों से अपराध हो जाता है, और दूसरी श्रेणी के लोग अपराध करते हैं।पहली श्रेणी के लोग कम हैं और पकड़े भी जाते हैं और सजा भी पाते हैं।

दूसरी श्रेणी में लोगो की संख्या बहुत अधिक है और प्राय: पकड़े नहीं जाते, और पकड़ भी गये तो छूट जाते हैं| अपराधियों द्वारा किये जानें वाले अपराध को भारतीय दंड संहिता के अनुसार जमानती (Bailable) , गैर जमानती अपराध (Non-Bailable) में विभाजित किया गया है| आईये जानते है, जमानती (Bailable) , गैर जमानती अपराध (Non-Bailable) क्या है | 

जमानत क्या होता है 



जमानती अपराध (Bailable)

भारतीय दंड संहिता की प्रथम अनुसूची में जमानतीय अपराधों का उल्लेख किया गया है। जमानती अपराधों में मारपीट, धमकी, लापरवाही से मौत, लापरवाही से गाड़ी चलाना, जैसे मामले आते हैं। ऐसे अपराधों को जमानती बताया गया है और उसमें अभियुक्त की ज़मानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्त्तव्य है। उदाहरण के लिये, किसी व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक साधारण चोट पहुँचाना, उसे सदोष रूप से अवरोधित अथवा परिरोधित करना, मानहानि करना आदि भी ज़मानती अपराध हैं। जमानती अपराध में कोर्ट को बेल देनी ही होती है| सीआरपीसी की धारा 436 के तहत जमानती अपराध में कोर्ट द्वारा जमानत दे दी जाती है। कुछ परिस्थितियों में सीआरपीसी की धारा 169 के तहत थाने से ही जमानत दिए जाने का भी प्रावधान है। गिरफ्तारी होने पर थाने का इंचार्ज बेल बॉन्ड भरवाने के बाद आरोपी को जमानत दे सकता है।

अग्रिम जमानत (Anticipatory bail) क्या है

गैर जमानती अपराध (Non-Bailable)

भारतीय दंड संहिता में गैर -जमानती अपराध की परिभाषा नहीं दी गयी है।सामान्यतया गंभीर प्रकृति के अपराधों को ग़ैर-ज़मानती बनाया गया है। ऐसे अपराधों में ज़मानत स्वीकार किया जाना या नहीं करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। उदहारण के लिये, अतिचार, चोरी के लिए गृह-भेदन, मर्डर, अपराधिक न्यास भंग आदि ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं। इनमे जमानत भारतीय दंड सहित की धारा 437 के अंतर्गत मिलती है

गैर जमानती अपराधों में डकैती, लूट, रेप, हत्या की कोशिश,फिरौती के लिए अपहरण और गैर इरादतन हत्या जैसे अपराध शामिल है| इस तरह के मामलों में अदालत के सामने तथ्य पेश किए जाते हैं और फिर कोर्ट जमानत पर निर्णय लेता है। गैर-जमानती अपराध करनें वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना पड़ता है। ऐसे मामले में आरोपित व्यक्ति को फांसी या उम्रकैद तक की सजा हो सकती है,ऐसे में उस व्यक्ति को बेल नहीं दी जाती ।

सेशन कोर्ट में यदि उम्रकैद या फांसी की सजा के प्रावधान वाले केस में सीआरपीसी की धारा-437 के अपवाद का सहारा लेकर जमानत अर्जी लगाई गई हो तो उस आधार पर कई बार जमानत मिल सकती है, परन्तु यह याचिका कोई महिला या शारीरिक या मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ही लगा सकता है, लेकिन बेल देने का अंतिम निर्णय कोर्ट का ही होगा।

आरोप पत्र क्या होता है

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