बंदी प्रत्यक्षीकरण शब्द अक्सर संविधान के अंतर्गत हमको सुनने में आता है परन्तु ये आखिर होता क्या है इसको कैसे लागू करवाया जा सकता है, एक आम आदमी के लिए यह किस प्रकार महत्वपूर्ण होता है, आज के इस आर्टिकल में हम बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट के बारे में चर्चा करने जा रहे है |
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इस पोर्टल के माध्यम से यहाँ बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट क्या इसे बताने का प्रयास किया जा रहा हैं, Habeas Corpus से जुडी सभी बातों को आज हम विस्तृत रूप से यहाँ जानेंगे | साथ ही आपको ये भी यहाँ बता दें कि संविधान से जुड़े अन्य आर्टिकल और जानकारी इस पोर्टल www.nocriminals.org पर विस्तार से बताई गई है आप उन आर्टिकल के माध्यम से संविधान के आर्टिकल, अनुसूचियों आदि के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |
एक रिट अथवा याचिका का अर्थ है –आदेश, अर्थात वह कुछ भी जिसे एक अधिकार के तहत जारी किया जाता है वह याचिका कहलाती है, याचिकायें या Writ (रिट) पांच प्रकार की होती हैं –
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण,
- परमादेश,
- उत्प्रेषण,
- निषेधाज्ञा
- अधिकार पृच्छा
आज के इस आर्टिकल में हम मुख्य रूप से “बन्दी प्रत्यक्षीकरण” को देखेंगे बाकी के बारे में हम दुसरे आर्टिकल में चर्चा करेंगे |
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बन्दी प्रत्यक्षीकरण शब्द का अर्थ
सबसे पहले हम इसके अर्थ के बारे में जानेंगे बंदी प्रत्यक्षीकरण को लातिनी भाषा में “Habeas Corpus” हेबियस कॉर्पस, कहते है | जिसका अर्थ होता है “हमारा आदेश है कि” इसका हिन्दी मे सामान्य अर्थ होता है “आपके पास शरीर है” | अगर हम संवैधानिक भाषा की बात करें तो यह एक प्रकार का क़ानूनी आज्ञापत्र अथवा (Writ, रिट) होता है , जिसका प्रयोग करके किसी के द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीके से गिरफ़्तार व्यक्ति को रिहाई करवाई जा सकती है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण का इतिहास
बंदी प्रत्यक्षीकरण के इतिहास की बात करें तो इसकी शरुवात 1215 के मैग्ना कार्टा द्वारा की गई थी। ब्लैकस्टोन, हैबियस कॉरपस एड सबजीसीएन्डम के प्रथम दर्ज उपयोग को 1305 में किंग एडवर्ड के शासनकाल के दौरान उल्लिखित करते हैं। पुराने समय में जब पुलिस पर कोई लगाम नहीं थी और वे किसी भी साधारण नागरिक या व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लें तो पुलिस किसी को भी जवाबदेह नहीं होती थी । ऐसे में बंदी प्रत्यक्षीकरण का सिद्धांत को लाया गया और इसे लागू करवाया गया, ये ऐसी पुलिस द्वारा की गई मनमानियों पर रोक लगाकर साधारण नागरिकों को सुरक्षा देता है। आपके बता दें कि बंदी प्रत्यक्षीकरण के समान एक अधिनियम पोलैंड में 1430 के दशक में अपनाया गया था |
बंदी प्रत्यक्षीकरण आज्ञापत्र अदालत द्वारा पुलिस या अन्य गिरफ़्तार करने वाली राजकीय संस्था को यह आदेश जारी करता है कि बंदी को अदालत में पेश किया जाए और उसके विरुद्ध लगे हुए आरोपों को अदालत को बताया जाए। यह आज्ञापत्र गिरफ़्तार हुआ व्यक्ति स्वयं या उसका कोई सहयोगी (जैसे कि उसका वकील) न्यायलय से याचना करके प्राप्त कर सकता है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण मूलतः अंग्रेज़ी कानून में उत्पन्न हुई एक सुविधा थी जो अब विश्व के कई देशों द्वारा अपना ली गई है। ब्रिटिश विधिवेत्ता अल्बर्ट वेन डाईसी ने लिखा है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिनियमों “में कोई सिद्धांत घोषित नहीं और कोई अधिकार परिभाषित नहीं, लेकिन वास्तव में ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता की ज़मानत देने वाले सौ संवैधानिक अनुच्छेदों की बराबरी रखते हैं।”
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व्यक्ति द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण ( हेबियस कॉर्पस ) याचिका कब दायर की जाएगी
यह रिट जब दायर की जाती है तब इसके द्वारा न्यायालय ऐसे व्यक्ति को जिसे निरुद्ध किया गया है या कारावास में रखा गया है न्यायालय के समक्ष उपस्थित करा सकता है और उस व्यक्ति के निरुद्ध किये जाने के कारणों की जांच कर सकता है। यदि न्यायलय को ऐसा लगता है कि व्यक्ति को बिना वजह ही गिरफ्तार या निरोध किया गया है जिसका कोई विधिक औचित्य नही है तो उसे स्वतंत्र कर देने का आदेश दिया जाता है।
कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट 1974 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष पेश करना इस रिट का सारवान लक्षण नही है। यह रिट निम्नलिखित परिस्थितियों में निकली जाती है।
- जब एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तारी कानून यह बताता है कि 24 घंटे के भीतर उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। पुलिस, हर गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना इस लिए जरूरी है कि जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उस व्यक्ति की गिरफ्तारी के समुचित कानूनी आधार हैं। यदि पुलिस उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष लाने में असफल रहती है तो यह हिरासत अवैध मानी जायेगी। ऐसे मामले में, गिरफ्तार व्यक्ति, या गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार / दोस्त उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (ह्बीस कॉर्पस) याचिका दायर कर सकते हैं।
- कुछ कानूनों के तहत, जैसे सशस्त्र बलों (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 एक व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए बिना 3 महीने तक हिरासत में रक्खा जा सकता है।
- जहां निरोध प्रक्रिया के उल्लंघन में है, जैसे निरुद्ध व्यक्ति को विहित समय के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित न करना।
- गिरफ्तारी का आदेश किसी विधि का उल्लंघन करता है, जैसे मनमाना आदेश।
- किसी व्यक्ति को किसी प्राइवेट व्यक्ति ने निरुद्ध किया है।
- किसी व्यक्ति को ऐसे विधि के अधीन गिरफ्तार करना जो असंवैधानिक है।
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आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 21 को आपातकाल की घोषणा के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है। इसलिए, बंदी प्रत्यक्षीकरण एक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण रिट का काम करती है ।
यहाँ यह भी जानना जरुरी है कि –
- सुप्रीम कोर्ट केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में ही राज्य के खिलाफ बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी कर सकता है |
- जबकि उच्च न्यायालय अवैध रूप से या मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गये किसी भी आम नागिरक के खिलाफ भी यह जारी कर सकता है।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट हिरासत में लिया गये व्यक्ति द्वारा स्वंय या उसकी ओर से कोई भी व्यक्ति दायर कर सकता है।
दोस्तों आज यहाँ इस पेज पर बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट क्या है ? इसके बारे में जानकारी दी है हो गई होगी | हमने यहाँ बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट और इसके विभिन्न पहलुओं को विस्तार से उल्लेख किया है, यदि फिर भी इससे सम्बन्धित या अन्य संविधान से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है | इसको अपने मित्रो के साथ शेयर जरूर करें | लेख पसंद आये तो इसे शेयर करना न भूले, धन्यवाद |
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सर नमस्कार.सर स्वतःच्या रक्षणासाठी बंदी प्रत्यक्षीकरण अंतर्गत मुंबई हायकोर्टात याचिका दाखल करण्यात येते का.सदर सात वर्षांपासून पाहिजे ४ आरोपी हे अटक आरोपींना माहिती असून शोध घेण्यास सात दिवस पोलीस कस्टडी रिमांड मिळणेस मा. न्याययदंडधिकारी साहेबांकडे दोनदा विनंती करुन पण आजतागायत न्यायालयात हजर करण्यात पोलीसांना अपयश येत असल्याने स्वताच्या रक्षणासाठी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखल करण्यात येते का.सदर हा गुन्हा उल्हासनगर ०१ पोलिस स्टेशन मध्ये दिनांक २१/०१/२०१३ रोजीची गु रजि.( F i r) नंबर . i 23/2013. या एक दाखल फौजदारी खटल्यात स्थानिक कोर्टाची दिनांक २२/०१/२०१३ आणि दिनांक २३/०१/२०१३ रोजीची पोलिस रिपोर्ट जावक नंबर दोन ४७१ आणि ४९८. या दोन्ही मध्ये उल्हासनगर ०३ चोपडा कोर्ट पाहिजे आरोपी बाबत मा . न्यायदंडाधिकारी साहेबांकडे विनंती केली होती. सदर कोर्ट केस नंबर.R.c.c 1000477. सदर आपले मदत मिळेल का.मदतीची अपेक्षा करत आहे.