पार्टनरशिप डीड क्या है | Partnership Deed Format Explained in Hindi


हमारे देश में अधिकांश लोग अपना नया व्यवसाय शुरू करनें के लिए दो या दो से अधिक लोगो को पार्टनर बनाते है, ताकि व्यवसाय को आसानी से शुरू किया जा सके | दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है, कि यह व्यवसाय या फर्मपार्टनरशिप में चलायी जा रही है | किसी भी व्यवसाय को पार्टनरशिप में चलानें से पहले पार्टनरशिप के लिए कुछ शर्ते निर्धारित की जाती है, जैसे कि आपनें जिसे पार्टनर बनाया है वह कम्पनी या व्यवसाय में कितनें प्रतिशत हिस्सेदार है | लाभ या हानि होनें पर वह कितनें प्रतिशत का हिस्सेदार होगा आदि इसी प्रकार की अनेक शर्ते निर्धारित की जाती है, और इन शर्तों को कानूनी रूप से मान्यता देने के लिए एक लिखित दस्तावेज तैयार किया जाता है, जिसे हम पार्टनरशिप डीड कहते है |

यहाँ पर आज आपको “पार्टनरशिप डीड क्या है | Partnership Deed Format Explained in Hindi ” के बारे में बताने का प्रयास करेंगे, आखिर यह पार्टनरशिप डीड (Partnership Deed) कैसे बनायीं जाती है?  साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर  अन्य महत्वपूर्ण लॉ से सम्बन्धित  बातों को विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से उनके बारे में भी जानकारी  ले सकते हैं |



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पार्टनरशिप डीड क्या है (What is Partnership Deed)

जब दो या दो से अधिक लोग मिलकर पार्टनरशिप में एक समझौते के तहत एक नया व्यापार अथवा किसी पुराने व्यवसाय में ही साझेदारी करते हैं, तो वह एक पार्टनरशिप द्वारा संचालित फर्म कहलाती है। यदि आप किसी को साझेदार या पार्टनर बनकर एक नया व्यवसाय शुरू करना चाहते है, तो उसके लिए यह जरूरी होता है कि एक करार किया जाय जो कि लिखित में होना चाहिए | दो पार्टनर्स के बीच होनें वाले लिखित अग्रीमेंट को पार्टनरशिप डीड कहते है | पार्टनरशिप में बिजनेस शुरू करनें के लिए पार्टनरशिप डीड की आवश्यकता होती है, इसके लिए लीगल एडवाइस लेना काफी फायदेमंद होता है |      

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पार्टनरशिप डीड में शामिल तथ्यों का विवरण (Details of facts involved in Partnership Deed)

  • फर्म का नाम
  • पार्टनर्स का नाम और निवास का पूरा विवरण
  • बिजनेस की प्रकृति
  • पार्टनरशिप की समय सीमा
  • प्रत्येक साझेदार द्वारा योगदान की जाने वाली पूंजी का विवरण
  • पार्टनर्स के अधिकारों का विवरण
  • पार्टनर्स के कर्तव्य
  • साझेदार को पारिश्रमिक के रूप में मिलनें वाली राशि
  • वह अनुपात जिसमें लाभ या हानि साझेदारों के बीच विभाजित किया गया है
  • साझेदार के प्रवेश, सेवानिवृत्ति और मृत्यु के समय सद्भावना की गणना का आधार।
  • खातों की उचित पुस्तकों को रखना और बैलेंस शीट की तैयारी
  • फर्म के विघटन पर राशि का निपटान
  • साझेदारों के बीच विवादों के मामले में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

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पार्टनरशिप डीड का पंजीकरण (Partnership Deed Registration)

भारत में पार्टनरशिप भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 द्वारा शासित होती है | पार्टनरशिप एक्ट के अनुसार साझेदारी फर्म को पंजीकृत करना वैकल्पिक है, अर्थात पार्टनर अपनी पार्टनरशिप को पंजीकृत कर सकते हैं या नहीं भी कर सकते हैं। परन्तु फर्म का रजिस्ट्रेशन न होनें पर विवाद की स्थिति उत्पन्न होनें पर अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है,  इसलिए हमेशा लिखित पार्टनरशिप डीड तैयार करना और फर्म को रजिस्ट्रार ऑफ फर्म के साथ पंजीकृत करना उचित होता है।

फर्म के पंजीकृत न होनें पर फर्म किसी भी स्थिति में किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकते, उदाहरण के लिए यदि किसी पार्टी नें फर्म को बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है, तो कंपनी का रजिस्ट्रेशन न होनें कारण किसी प्रकार की कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकते | इसके साथ ही किसी पार्टनर के खिलाफ मामला नहीं कर सकती। भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार, किसी फर्म के पंजीकरण की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। किसी भी फर्म का पंजीकरण फर्म शुरू करनें या शुरू करनें के बाद भी किया जा सकता है, परन्तु इसके लिए निर्धारित शुल्क और जुर्मानें की राशि का भुगतान करना होता है | इस तरह के पंजीकरण की प्रक्रिया इस प्रकार है-

लीगल नोटिस क्या होता है

किसी भी फर्म के रजिस्ट्रेशन के लिए एक निर्धारित प्रपत्र (फार्म ए) में रजिस्ट्रार को आवेदन करना होता है। वर्तमान समय में यह सुविधा ऑनलाइन भी उपलब्ध है। इस तरह के आवेदन में फर्म के बारे में कुछ बुनियादी जानकारी के साथ-साथ कुछ दस्तावेजों कि आवश्यकता होती है, जो इस प्रकार है-

  • साझेदारी फर्म का नाम, सभी पार्टनर्स का नाम और पता, व्यवसाय का स्थान, साझेदारी की अवधि, पार्टनर्स के शामिल होने की तिथि, बिजनेस शुरू करने की तिथि |
  • पार्टनरशिप डीड की विधिवत हस्ताक्षरित प्रति (जिसमें सभी नियम और शर्तें शामिल हैं) को रजिस्ट्रार के साथ भरना होगा।
  • आवश्यक शुल्क जमा करें और शुल्क का भुगतान करें।
  • एक बार जब रजिस्ट्रार आवेदन को मंजूरी दे देता है, तो फर्म को रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। और रजिस्ट्रार निगमन का प्रमाण पत्र भी जारी करेगा।
  • इस तरह पंजीकरण प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और फर्म को कानूनी मान्यता मिल जाएगी।

प्रमुख कानूनी शब्दावली

पार्टनरशिप डीड पर स्टांप शुल्क की जानकारी (Stamp Duty on Partnership Deed)

भारतीय स्टांप अधिनियम1899 की धारा 46 के अनुसार पार्टनरशिप से सम्बंधित कार्यों के लिए स्टांप शुल्क निर्धारित है, हालाँकि यह शुल्क राज्यों के अनुसार अलग-अलग हों सकते है| गैर-न्यायिक स्टांप पेपर पर डीड को 200 रुपये या उससे अधिक के न्यूनतम मूल्य के साथ नोटरी किया जाना है।

यदि हम दिल्ली की बात करे तो यहाँ पार्टनरशिप डीड पर न्यूनतम स्टाम्प शुल्क 200 रुपये है। मुंबई में न्यूनतम स्टांप शुल्क , देय साझेदारी पर देय शुल्क 500 रुपये है। बेंगलुरु में, स्टाम्प के रूप में 500 रुपये का भुगतान करना होगा। कोलकाता में डीड को 500 रुपये के स्टांप पेपर पर मुद्रित किया जाता है।

अनुसूचीI के अनुच्छेद 44 के तहत गुजरात स्टाम्प अधिनियम, 1958 के तहत, पार्टनरशिपडीड पर स्टांप शुल्क भागीदारी पूंजी का 1% है, जो अधिकतम 10,000 रुपये है।

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पार्टनरशिप डीड का प्रारूप (Format Of Partnership Deed)

भागीदारी नामा

यह भागीदारी नामा आज दिनांक _________ कों निम्न भागीदारी के मध्य शहर ______में निष्पादित की गयी हें कि:

1. श्री _________पिता श्री _____________ आयु ____निवासी ________________(____) (प्रथम भागीदार निवेशक भागीदार) |

2. श्री ____________ पिता _________ आयु ____निवासी _____________ (द्वितीय भागीदारी वर्किंगपार्टनर) |

यह कि दोनों भागीदारो ने मिलकर आपस में विस्फोटक पर्दाथभण्डारण क्रय विक्रय व उपयोग करने का तय किया हैं | जिसकी निम्न शर्त तय की गयी हैं :

…2…

1. यह कि इस भागीदारी फर्म का नाम _________रहेगा किन्तु भागीदारी की पूर्ण सहमति से नाम बदला भी जा सकेगा |

2. यह की इस भागीदारी फर्म का मुख्य व्यवसाय स्थान ग्राम ______ जिला ____(__.) रहेगा किन्तु भागीदारी की पूर्ण सहमति से अन्य स्थानों पर भी इस फर्म शाखाएं की खोला अथवा बन्द की जा सकेगी |

3. यह कि इस भागीदारी फर्म का मुख्य व्यवसाय..______ का हें व रहेगा किंतु भागीदारी की स्वतंत्र सहमति से ठेकेदारो का व अन्य प्रकार का व्यवसाय भी किया जा सकेगा |

4. यह की उपरोक्त्तफर्म में प्रथम पक्षकार ही फर्म के व्यवसाय में अपनी आवश्यकतानुसार पूंजी लगावेगे|

5. यह की इस भागीदारी फर्म के व्यवसाय में पक्षकारसख्यां द्वितीय की कार्यशील भागीदारी होगें जो की फर्म के व्यवसाय के हित में पूरा पूरा समय देकर पूर्ण लगन व निष्ठा से चलायेगे| कार्यशील भागीदार (वर्किंगपार्टनर ) की रेम्यूनरेशन,बनोंस, बिक्री पर कमीशन आदि भी दिया, जा सकेगा |

6. यह की इस भागीदारी फर्म का व्यवसायिक वर्ष वित्तीय वर्ष होगा इस भागीदारी का प्रथम वर्ष दिनाकं 01-04-2011 से शुरू होकर 31-03-2012 कों समाप्त होगा | प्रत्येक वर्ष के 31 मार्च कों हिसाब किताब बन्द करके माल खाता, नफा, नुकसान खाता एवं आकड़ा बना लिया जायेगा तथा होंने वाले लाभ अथवा हानि कों भागीदारी के पूँजी खाते में शर्त सख्यां 7 के अनुसार जमा खर्च कर लिया जावेगें|

7. यह की इस भागीदारी फर्म का व्यवसाय से होने वाले लाभ अथवा हानि जो सम्बंधित सभी खर्चोंकों एवं भागीदारी कों दिये ब्याज एवं कार्यशील भागीदारों कों देय रेम्यूनरेशन| जो की इस भागीदारी फर्म की इस विल्स की शर्त सख्यां १० के अनुसार होगा | घटाने के बाद रहेगा उसे भागीदार आपस में मिलकर निम्न प्रकार बाटेंगे :-

लाभ हानि

1. श्री ________ – प्रथम पक्षकार__% __%

2. श्री ___________ द्वितीय पक्षकार__% __%

योग —————————-

100 प्रतिशत 100 प्रतिशत

—————————-

…3…

8. यह की उपरोक्त्त सभी पक्षकारों ने पूर्ण सहमति से स्वीकार किया है, कि  श्री ________ एवं श्री ___________ व्यापार की आवश्यकता अनुसार पूर्ण निष्ठा एवं लगन से फर्म के हित में कार्यशील रहेंगे |

9. यह कि उनके फर्म के लिये कियेगयें कार्यों एवं सेवा के लिये उन्हें रेम्यूनरेशन दिया जा सकेगा रेम्यूनरेशन कि गणना निम्न प्रकार की जा सकेगी|

बुक प्रोफिट भागीदारों को देय वेतन

अ. प्रथम रूपया 300000/- तक के रूपया 150000/- तक या बुक प्रोफिट या नुकसान कि प्रोफिट का 90 प्रतिशत तक,स्थिति मेदोंनो में से जो अधिक होगा |

ब. तीन लाख से अधिक के 60 प्रतिशत तकबुक प्रोफिट पर

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नोट बुक प्रोफिट वहीं माना जायेगां जो आयकर अधिनियम 1961 धारा 40 [B] में परिभाषित किया गया हें या ऐसा कोई वेधानिक परिवर्तन सुधार जो वर्तमान में लागू होगा |

इस प्रकार बुक प्रोफिट पर गणना किया गया कुल रेम्यूनरेशनदोंनो कार्यशील भागीदारों श्री _________एवंश्री__________ कों बराबर चुकाया जायेगा|

यह कि इस प्रकार जो भी रेम्यूनरेशन बुक प्रोफिट के ज्ञात होने के बाद बनेगा उसे भागीदारों के खातों मे उनके लाभ अथवा हानि के हिस्से के अनुसार जमा खर्च कर दिया जाऐगा| यदि कार्यशील भागीदार चाहे तोंरेम्यूनरेशन नहीं भी ले सकेगें यह कि देय रेम्यूनरेशन से कार्यशील भागीदार वर्ष भर में खर्च के लिये आर्थिक रूपया नहीं उठा सकेंगे यदि देय रेम्यूनरेशन से अधिक रूपया उठाया तों उस कार्यशील भागीदार फर्म के वर्ष के हिसाब फाईनल हों जाने के तीन माह के अन्दर- अन्दर वापस फर्मकों जमा करना होगा |

10. यह कि उक्त फर्म के नाम से किसी भी बैंक मे श्री _______ (प्रथम भागीदार) अपने हस्ताक्षर से खाता खुला सकेगा एवं समस्त बैंकिंग कार्य व्यवहार कर सकेंगे एवं चेकों प्रपत्रो आदि पर हस्ताक्षर कर सकेगा| जिसके लिये एवं श्री ________ को समस्त बैंकिंग कार्य के लिए श्री __________ ने अधिकृत/मुक़र्रर कर दिया है | इसमें दोंनोभागीदारोकी रजामंदी हैं|

11. यह कि भागीदारों के पूँजी खातों , चालु खाते एवं गुण खातों में जमा रुपयों पर भागीदारों कों उनकी पूर्ण सहमति से साधारण ब्याज की दर 18 प्रतिशत प्रति वर्ष के हिसाब से या ऐसे ब्याज की दर से जो भागीदार आपस में मिल कर तय करें या आयकर अधिनियम 1961 की धारा 40 (बी) के प्रवधानों के अनुरूप ही दिया जा सकें| यदि भागीदारों के पुंजी खातों मेरूपया नाम निकालता हों तों भागीदारों कों 18 प्रतिशतकी दर से फर्मकों ब्याज देय होगा,कम ब्याज की दर भागीदार आपस में मिलकर तय कर सकेंगे |

12. यह कि इस भागीदारी फर्म के व्यवसाय में सभी भागीदारों कि पूर्ण सहमति से किसी भी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों कों भागीदारों के रूप में लिया जा सकेगा |

13. यह कि कोई भी भागीदार अलग होना चाहेगा तों एक माह पहले सूचना देनी आवश्यक होंगी .इस भागीदारों फर्म के व्यवसाय से कभी भी कोई भी भागीदार एक माह पूर्व का लिखित नोटिस देकर एवं अपना हिसाब समझकर अलग हों सकेगा |

14. यह कि यह भागीदार ऐच्छिक भागीदारी होगी |

15. यह कि किसी भी भागीदार की मृत्यु पर यह भागीदारी समाप्त नहीं होगीं|

16. यह कि इस भागीदारी फर्म के व्यवसाय से सम्बंधित भागीदारों के बीचआपस में कभी भी होने वाले मनमुटाव झगड़ा- फसाद, वह विवाद आदि कों पंच फेसले द्वारा निपटाया जायेगा, पंच फैसला सभी भागीदारों को मान्य होगा |

17.यह कि इस भागीदारी फर्मकों उपरोक्त शर्तों में सभी भागीदारों कि स्वतंत्र सहमति से कभी भी कोई भी परिवर्तन , परिवर्धन एवं सशोधित किया जा सकेगा |

18. यह कि उपरोक्त शर्तों के आलावा अन्य मामलों मेपाटर्नरशिपएक्ट 1932 कि धारा लागुहोगीं|

…5…

यह कि उपरोक्त भागीदारों फर्म कि शर्त हम प्रयकर्ताओ ने आपस मे मिल कर अपनी स्वतंत्र सहमति से बिना किसी के बड़कावे एवं फुसलाने मे आए आज दिनाकं__________ कोंस्टाम्प पेपर सख्यां____ तदादी___/- रूपया कुल ________ पर स्वस्थ्य चित्त एवं प्रसन्न मुद्वा कि अवस्वथामे लिख दी हेंसों सनद रहे वक्त जरुरत काम आवे|

इसके फलस्वरूप इस पर हस्ताक्षर कर दिये हैं| न्याय क्षेत्र उदयपुर रहेगा अत: यह भागीदारी पत्र दोंनोभागीदारो ने अपनी राजी खुशी, होशो हवास व बिना किसी दबाव के लिख दिया सो सनद रहे वक्त जरुरत काम आवे|

स्थान ………………………..

ह० भागीदार सं० 1……….

ह० भागीदार सं० 2……………………….

दिनांक ……………….

गवाह (1)……………………

पता…………………………….

गवाह (2)……………………..

पता…………………………….

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आज के इस आर्टिकल में हमने आपको “पार्टनरशिप डीड क्या है | Partnership Deed Format Explained in Hindi” इसके बारे में विस्तार से जानकारी यहाँ इस पेज पर दी है अगर फिर भी आप के मन में इससे संबंधित कोई प्रश्न हैं तो कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं हम आप के द्वारा पूछे गए प्रश्नो का उत्तर देने का पूरा प्रयास करेंगे |    

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