प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत क्या है | Law of Natural Justice in Hindi


आज हम जिस टॉपिक पे चर्चा करने वाले हैं वह संविधान और न्याय की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है | आज हम यहाँ आपके समक्ष प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय के बारे में चर्चा करेंगे इसके सिद्धांतों के बारे में भी बात होगी | हालाँकि  प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का उल्लेख सीधे तौर पर संविधान में कही भी नहीं लिखा है | फिर भी इसका बेहद खास महत्व है | आज हम यहाँ इस लेख (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत के बारे में जानेंगे साथ ही ये भी देखेंगे इनका क्या अर्थ होता है | तो देखते हैं आखिर प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत क्या है | Law of Natural Justice in Hindi

इस पोर्टल के माध्यम से यहाँ प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत क्या है | Law of Natural Justice in Hindi इसके बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य संविधान की महत्वपूर्ण बातों और उसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से संविधान के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

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प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत क्या है

प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत का अर्थ यह है कि ऐसे सिद्धांत जिनका  न्याय करने वाला अधिकारी हो या प्रशासनिक अधिकारी दोनों को इन सिद्धांत का पालन करना बहुत आवश्यक है यह न्यूनतम मानक और सिद्धांत ही जनता को प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय दिलाने में सहायक होती है | मुख्य रूप से दो प्रकार के ही सिद्धांत का प्रयोग प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय के लिए प्रशासनिक अधिकारी को न्याय देते समय ध्यान रखना होता है –

  1. किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने स्वयं के मामले में जज (न्यायधीश) नहीं होना चाहिए |
  2. प्रत्येक पक्ष को सुने जाने का मौका दिया जाना चाहिए, अर्थात दोनों  पक्ष की दलील को सुनने के बाद ही कोई निर्णय दिया जाये |

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प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का अर्थ

प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का अर्थ होता है – निष्पक्षता औचित्य और समानता | यह प्रायः ईश्वरीय (न्याय) कानून और सामान्य कानून के रूप में उपयोग किया जाता है  | यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात है कि यह एक बदलती हुई विषय-वस्तु का सिद्धांत है | हमने आपको ऊपर ही बताया है कि भारत के संविधान में कहीं भी प्राकृतिक न्याय का उल्लेख देखने को नहीं मिलता । हालाँकि भारतीय संविधान की उद्देशिका, अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के रूप में देखा जा सकता है। आइये देखते है कि किस प्रकार से इनमे अर्थात उद्देशिका, अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को देखा जा सकता है –

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उद्देशिका: संविधान की उद्देशिका में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, विचार, विश्वास एवं पूजा की स्वतंत्रता शब्द शामिल हैं और प्रतिष्ठा एवं अवसर की समता जो न केवल लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों में निष्पक्षता सुनिश्चित करती है बल्कि व्यक्तियों के लिये मनमानी कार्रवाई के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु ढाल का कार्य करती है, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का आधार है।

अनुच्छेद 14: इसमें बताया गया है कि राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह नागरिक हो या विदेशी सब पर लागू होता है।

अनुच्छेद 21: वर्ष 1978 के मेनका गांधी मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत व्यवस्था दी कि प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को उचित एवं न्यायपूर्ण मामले के आधार पर रोका जा सकता है। इसके प्रभाव में अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा केवल मनमानी कार्यकारी क्रिया पर ही उपलब्ध नहीं बल्कि विधानमंडलीय क्रिया के विरुद्ध भी उपलब्ध है।

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प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय  के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के अधिकारों के रूप में देख सकते हैं जो कि वादी प्रतिवादी को दिए जाने आवश्यक है इनके बिना प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय संभव ही नहीं होगा | इन अधिकारों में निम्न अधिकार को शामिल किया गया है-

  • नोटिस (चेतावनी) का अधिकार |
  • मुक़दमे और साक्ष्य को पेश करने का अधिकार |
  • प्रतिकूल साक्ष्य को खंडित करने का अधिकार |
  • प्रतिपरीक्षा (जिरह) करने का अधिकार |
  • फैसले के बाद सुनवाई का अधिकार |

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उपरोक्त वर्णन से आपको आज प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत क्या है | Law of Natural Justice in Hindi इसके बारे में जानकारी हो गई होगी | प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, यदि फिर भी इससे सम्बन्धित या अन्य किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप  हमें  कमेंट  बॉक्स  के  माध्यम  से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है | इसको अपने मित्रो के साथ शेयर जरूर करें |

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4 thoughts on “प्राकृतिक (नैसर्गिक) न्याय का सिद्धांत क्या है | Law of Natural Justice in Hindi”

  1. जब आरोपी व्यक्ति के द्वारा अपने ऊपर लगे आरोपों से संबंधित साक्ष्य एवं जांच प्रतिवेदन की मांग विभाग से की जाती है तो क्या आरोपी व्यक्ति को बिना साक्ष्य एवं जांच प्रतिवेदन उपलब्ध कराएं विभाग कार्रवाई कर सकता है या नहीं

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