Family Court Rules in Hindi | फैमिली कोर्ट के नियम, फैमिली कोर्ट एक्ट इन हिंदी पीडीएफ


आज के आधुनिक दौर में पारिवारिक विवादों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है | हालाँकि भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन के रूप में माना जाता है, परन्तु कई बार विभिन्न कारणों से इस पवित्र रिश्ते में दरार आ जाती है | कई बार तो यह आपसी विवाद एक ऐसी स्थिति तक पहुँच जाता है, जिसे आपसी बातचीत से सुलझाना नामुमकिन हो जाता है |

ऐसे में लोग न्यायालय का रुख करते है | भारत में लोगो को त्वरित न्याय देने के लिए विभिन्न प्रकार की अदालतों का गठन किया गया है, ताकि न्यायालय पर मुकदमों का भार कम होने के साथ ही लोगो को नयी शीघ्रता से मिल सके | पारिवारिक विवादों को देखते हुए फैमिली कोर्ट का गठन किया गया है | आज हम आपके लिए इस पेज पर फैमिली कोर्ट की जानकारी लेकर आये है | यहाँ हम आपको बताएँगे कि फैमिली कोर्ट क्या है और इसके नियमों के बारें में |

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फैमिली कोर्ट क्या है (What is Family Court)

फैमिली कोर्ट को परिवार न्यायालय तथा कुटुंब न्यायालय के नाम से भी जाना जाता है | पारिवारिक मामलों में पति-पत्नी का झगड़ा, सास-बहू का विवाद आदि शमिल होते है | इस प्रकार के पारिवारिक और विवाह से सम्बंधित मामलों में कोर्ट द्वारा मध्यस्थता कर विवाद को बातचीत (Mutual Conversation) के माध्यम से समाप्त करनें के उदेश्य से वर्ष 1984 में परिवार न्यायालय अधिनियम (Family Court Act) पारित किया गया और इसी अधिनियम के अंतर्गत फैमिली कोर्ट का गठन किया गया है | 

कुटुंब न्यायालय या फैमिली कोर्ट को गठित करनें का का मुख्य उद्देश्य मध्यस्थता (Mediation), आपसी बातचीत और क्षतिपूर्ति (Indemnity) आदि के माध्यम से दोनों पक्षों में सुलह-समझौता कराना है | इसके बावजूद भी यदि विवाद नहीं निपटता है, तो फैमिली कोर्ट के माध्यम से विवाद का निपटारा किया जा सकता है | फैमिली कोर्ट अन्य न्यायालयों की अपेक्षा कुछ खास होता है, क्योंकि यह कोर्ट दोनों पक्षों की संतुष्टि पर कार्य करता है | 

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फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 के महत्वपूर्ण प्रावधान (Important Provisions of Family Court Act 1984)

परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 14 सितंबर, 1984 को अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम में 6 अध्याय और 23 धाराएँ हैं| यह अधिनियम परिवार और विवाह में उत्पन्न होने वाले विवादों और उससे संबंधित मामलों में तेजी से और सुरक्षित निपटान के लिए पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना के मुख्य उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था |

फैमिली कोर्ट की आवश्यकता क्यों पड़ी (Need for Family Court)

दरअसल न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ बढ़ने के साथ ही कई वर्षों तक चलने वाली लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के चलते लोगो को न्याय मिलनें में काफी समय लग जाता था, जिसके कारण पारिवारिक जीवन अदालत की लम्बी लड़ाइयों में चला जाता था | इसके लिए कुछ नागरिकों के संगठन (Citizens’ Organizations), महिला संगठन (Women’s Organization) और अन्य कई संगठनों नें पारिवारिक विवादों (Family Disputes) को त्वरित हल करनें के लिए एक फैमिली कोर्ट की मांग का मुद्दा उठाया | जिसके परिणाम स्वरुप वर्ष 1984 में फैमिली कोर्ट अधिनियम पारित हुआ, जिसके अंतर्गत पारिवारिक न्यायालय का गठन हुआ |

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भारत में  फॅमिली कोर्ट की स्थापना (Establishment of Family Court in India)

इस अधिनियम की धारा 3 के अनुसार , राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद, राज्य के प्रत्येक क्षेत्र में जहां जनसंख्या 10 लाख से अधिक है या उस क्षेत्र में जहां राज्य सरकार आवश्यक समझती है, परिवार न्यायालय की स्थापना करेगी।  राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के परामर्श के बाद, उस क्षेत्र की सीमा निर्दिष्ट करेगी जहां तक ​​परिवार न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का विस्तार होता है| यह फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र की ऐसी सीमाओं को कम, बढ़ा या बदल भी सकता है।

फैमिली कोर्ट की विशेषताएँ (Features of Family Court)

फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 के अनुसार इस न्यायालय की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार है-

  • फैमिली कोर्ट अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा उच्च न्यायालय की सहमति से परिवार न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान है |
  • इस एक्ट के अंतर्गत 1 लाख से अधिक जनसँख्या वाले क्षेत्र में 1 फैमिली कोर्ट स्थापित करना आवश्यक है |
  • इस कोर्ट के लिए न्यायाधीशों अर्थात जज की नियुक्ति राज्य सरकारों द्वारा उच्च न्यायालय की सहमति से की जाती है।
  • फैमिली कोर्ट को एक सिविल कोर्ट की भांति वही शक्तियां प्राप्त है, जिससे समझौता कानूनी होता है।
  • पति और पत्नी के अलग होनें पर बच्चे की कस्टडी को लेकर निर्णय देने की शक्ति फैमिली कोर्ट के पास होती है |
  • इस अधिनियम के अनुसार, आप किसी लीगल एक्सपर्ट से न्याय मित्र के रूप में एडवाइस ले सकते है, परन्तु वह किसी भी पक्ष की तरफ से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते |

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फैमिली कोर्ट का संचालन कैसे होता है (How does the Family Court Operate)

  • फैमिली कोर्ट के पास यह अधिकार और शक्तियां होती है, कि इसके संचालन हेतु प्रावधान बना सके |
  • फैमिली कोर्ट को प्राप्त शक्तियों के आधार पर यह किसी भी डाक्यूमेंट्स या स्टेटमेंट को प्राप्त कर सकता है, भले ही वह इंडियन इंडियन एविडेंस  एक्ट 1872 के अंतर्गत स्वीकार्य न हो।
  • फैमिली कोर्ट के आदेशों का प्रवर्तन (Enforcement) कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर (Code of Civil Procedure) 1908 के अंतर्गत होता है।

फैमिली कोर्ट में निस्तारित मामले (Cases Resolved in Family Court)

फैमिली कोर्ट में निस्तारित किये जानें वाले मामले इस प्रकार हैं-

विवाह विच्छेद (Divorce)

भारत सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में से एक है, जिसके कारण यहाँ विवाहित जोड़ो की संख्या काफी अधिक है। विवाहित जोड़े अधिक होनें के कारण उनकी फैमिली के बीच विवाद के अधिक मामले होने की संभावना अधिक होती है |  ऐसे में विवादों के निपटारे के लिए वह फैमिली कोर्ट में वाद दायर कर सकते है।

भारत में, फैमिली कोर्ट मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 , मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 जैसे विभिन्न अधिनियमों के तहत तलाक की डिक्री देने की अपील स्वीकार कर सकता है | तलाक अधिनियम 1869 , विशेष विवाह अधिनियम 1954, विदेशी विवाह अधिनियम 1969 आदि| हिंदू विवाह के विघटन के लिए कोई भी हिंदू विवाह (कार्यवाही का सत्यापन) अधिनियम, 1960 के तहत तलाक के लिए अपील दायर कर सकता है ।

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बच्चों की कस्टडी (Children’s Custody)

धारा 7(1) में स्पष्टीकरण (G) में प्रावधान है, कि फैमिली कोर्ट के पास एक उचित व्यक्ति को बच्चे की कस्टडी देने और उस सही व्यक्ति को एक नाबालिग का अभिभावक बनाने का अधिकार प्राप्त है| बच्चे की कस्टडी से सम्बंधित मामले फैमिली कोर्ट में दायर किए जाते हैं, जहां वह आमतौर पर रहता है | उदाहरण के लिए यदि पिता उत्तर प्रदेश में रहते है और माता नाबालिग बच्चे के साथ मुंबई में रहती है और पिता बच्चे की कस्टडी चाहते है, तो पिता को मुंबई के फैमिली कोर्ट में मामला दर्ज कराना होगा |

घरेलू हिंसा पर सुरक्षा आदेश (Protection Order on Domestic Violence)

फैमिली कोर्ट एक्ट में घरेलू हिंसा के मामलों में घरेलू हिंसा के मामलों से संबंधित कोई प्रावधान नहीं किया गया है | हालांकि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (इसके बाद डीवी अधिनियम) के तहत एक प्रावधान है, जिसके अनुसार पारिवारिक अदालत घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों पर विचार कर सकती है।

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संपत्ति विवाद (Property Dispute)

फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7(1) के स्पष्टीकरण (सी) के अनुसार, फैमिली कोर्ट के पास शादी के पक्षकारों की संपत्ति से संबंधित विवादों पर अधिकार क्षेत्र है | आम तौर पर विवाह के पक्षकारों के बीच विवाद तब उत्पन्न होते हैं, जब तलाक की डिक्री पारित हो जाती है | पारिवारिक न्यायालय दो शर्तों को पूरा करके विवाह के पक्षों की संपत्ति के विवादों से संबंधित मुकदमे या कार्यवाही पर विचार कर सकता है-

  • ऐसा विवाद केवल विवाह के पक्षकारों के बीच उत्पन्न हुआ होगा
  • ऐसा विवाद किसी भी पक्ष की संपत्ति के कारण उत्पन्न हुआ होगा

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