आईपीसी धारा 115 क्या है
आज हम आपके लिए इस पेज पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 115 की जानकारी लेकर आये है | यहाँ हम आपको बताएँगे कि भारतीय दंड सहिता (IPC) की धारा 115 किस प्रकार से परिभाषित की गई है और इसका क्या अर्थ है ? भारतीय दंड संहिता यानि कि आईपीसी (IPC) की धारा 115 क्या है, इसके बारे में आप यहाँ जानेंगे |
मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण–यदि अपराध नहीं किया जाता
इस पोर्टल के माध्यम से यहाँ धारा 115 क्या बताती है ? इसके बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य भारतीय दंड संहिता (IPC) की महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य धाराओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |
IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा) की धारा 115 के अनुसार :-
मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण–यदि अपराध नहीं किया जाता
जो कोई मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण करेगा, यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए, और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबन्ध इस संहिता में नहीं किया गया है, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से. जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा :
यदि अपहानि करने वाला कार्य परिणामस्वरूप किया जाता है–और यदि ऐसा कोई कार्य कर दिया जाए, जिसके लिए दुष्प्रेरक उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप दायित्व के अधीन हो और जिससे किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो, तो दुष्प्रेरक दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
दृष्टांत
ख को य की हत्या के लिए क उकसाता है । वह अपराध नहीं किया जाता है | यदि य की हत्या ख कर देता है, तो वह मृत्यु या ‘[आजीवन कारावास] के दण्ड से दण्डनीय होता | इसलिए, क कारावास से, जिसका अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय है और जुर्माने से भी दण्डनीय है; और यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप य को कोई उपहति हो जाती है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि चौदह वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
Section 115 – “ Abetment of offence punishable with death or imprisonment for life—if offence not committed ”–
Whoever abets the commission of an offence punishable with death or 1[imprisonment for life], shall, if that offence be not committed in consequence of the abetment, and no express provision is made by this Code for the punishment of such abetment, be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine; If act causing harm be done in consequence.—and if any act for which the abettor is liable in consequence of the abetment, and which causes hurt to any person, is done, the abettor shall be liable to imprisonment of either description for a term which may extend to fourteen years, and shall also be liable to fine.
Illustration
A instigates B to murder Z. The offence is not committed. If B had murdered Z, he would have been subject to the punishment of death or 1[imprisonment for life]. Therefore A is liable to imprisonment for a term which may extend to seven years and also to a fine; and if any hurt be done to Z in consequence of the abetment, he will be liable to imprisonment for a term which may extend to fourteen years, and to fine.
लागू अपराध
मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण,
1.यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता।
सजा – 7 वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध गैर–जमानती, और इसका संज्ञान और अदालती कार्रवाई किए गये अपराध अनुसार होगी।
2.यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप क्षति करने वाला कार्य किया जाता है।
सजा – 14 वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध गैर–जमानती,और इसका संज्ञान और अदालती कार्रवाई किए गये अपराध अनुसार होगी।
यह समझौता करने योग्य नहीं है।
आईपीसी की धारा 115 में सजा (Punishment) क्या होगी
यहाँ भारतीय दंड संहिता में धारा 115 किये गए अपराध के लिए सजा को निर्धारित किया गया हैं | जो इस प्रकार है – मॄत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण उसको –
1.यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता।
सजा – 7 वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध गैर–जमानती, और इसका संज्ञान और अदालती कार्रवाई किए गये अपराध अनुसार होगी।
2.यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप क्षति करने वाला कार्य किया जाता है।
सजा – 14 वर्ष कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध गैर-जमानती,और इसका संज्ञान और अदालती कार्रवाई किए गये अपराध अनुसार होगी।
आईपीसी (IPC) की धारा 115 में जमानत (BAIL) का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 115 में जिस अपराध की सजा के बारे में बताया गया है उस अपराध को एक गैर -जमानती और संज्ञेय अपराध बताया गया है | यहाँ आपको मालूम होना चाहिए कि गैर – जमानतीय अपराध होने पर इसमें जमानत मिलने में मुश्किल आती है क्योंकी CrPC में यह गैर – जमानतीय अपराध बताया गया है ।
मित्रों उपरोक्त वर्णन से आपको आज भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 115 के बारे में जानकारी हो गई होगी | कैसे इस धारा को लागू किया जायेगा ? इन सब के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, यदि फिर भी इस धारा से सम्बन्धित या अन्य धाराओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है | इसको अपने मित्रो के साथ शेयर जरूर करें |
अपराध | सजा | संज्ञेय | जमानत | विचारणीय |
किसी अपराध को उकसाना, मृत्यु दंडित करना या आजीवन कारावास, यदि उकसाने के परिणामस्वरूप अपराध नहीं किया जाता है | 7 साल कारावास की सजा + आर्थिक दण्ड | किये गए अपराध के समान | गैर – जमानतीय | उस अदालत के द्वारा जिसमे किया गया अपराध जाने योग्य है |
यदि कोई ऐसा कार्य जो उकसाने के परिणामस्वरूप नुकसान पहुंचाता है | 14 साल कारावास की सजा + आर्थिक दण्ड | किये गए अपराध के समान | किये गए अपराध के समान | उस अदालत के द्वारा जिसमे किया गया अपराध जाने योग्य है |