आईपीसी धारा 193 क्या है
यहाँ इस पेज पर ” मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड ” के बारे में बताने जा रहे है | भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 में ” मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड ” को प्रावधानित किया गया है | यहाँ हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारतीय दंड सहिता (IPC) की धारा 193 किस तरह अप्लाई होगी | भारतीय दंड संहिता यानि कि IPC की धारा 193 क्या है ? इसके सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे |
इस पोर्टल के माध्यम से भारतीय दंड सहिता की धारा 193 में सजा के बारे में क्या प्रावधान बताये गए हैं, और इसमें कितनी सजा देने की बात कही गई है? इनके बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 में जमानत के बारे में क्या बताया गया है ? सभी बातों को आज हम विस्तृत रूप से यहाँ जानेंगे, साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य धाराओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |
IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा ) की धारा 193 के अनुसार :-
मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड-
“जो कोई साशय किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से मिथ्या साक्ष्य गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा, और जुर्माने से भी, टंडनीय होगा ;
और जो कोई किसी अन्य मामले में साशय मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दंडनीय होगा |
स्पष्टीकरण 1 – सेना न्यायालय *** के समक्ष विचारणीय न्यायिक कार्यवाही है ।
स्पष्टीकरण 2 — न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारम्भ होने के पूर्व, जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो ।
दृष्टांत
यह अनिनिश्चय करने के प्रयोजन से कि क्या य को विचारण के लिए सुपुर्द किया जाना चाहिए. मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है, जिसका वह मिथ्या होना जानता है | यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिध्या साक्ष्य दिया है।
स्पष्टीकरण 3 – न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो ।
दृष्टांत
संबंधित स्थान पर जाकर भूमि की सीमाओं को अभिनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा प्रतिनियुक्त आफिसर के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है जिसका मिथ्या ठोना वह जानता है | यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए क ने मिध्या साक्ष्य दिया है।
S. 193 – “Punishment for false evidence ”–
“Whoever intentionally gives false evidence in any stage of a judicial proceeding, or fabricates false evidence for the purpose of being used in any stage of a judicial proceeding, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine, and whoever intentionally gives or fabricates false evidence in any other case, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, and shall also be liable to fine.
Explanation 1.— A trial before a Court-martial; 1[***] is a judicial proceeding.
Explanation 2.— An investigation directed by law preliminary to a proceeding before a Court of Justice, is a stage of a judicial proceeding, though that investigation may not take place before a Court of Justice.
Illustration
A, in an enquiry before a Magistrate for the purpose of ascertaining whether Z ought to be committed for trial, makes on oath a statement which he knows to be false. As this enquiry is a stage of a judicial proceeding, A has given false evidence.
Explanation 3.— An investigation directed by a Court of Justice according to law, and conducted under the authority of a Court of Justice, is a stage of a judicial proceeding, though that investigation may not take place before a Court of Justice.
Illustration
A, in any enquiry before an officer deputed by a Court of Justice to ascertain on the spot the boundaries of land, makes on oath a statement which he knows to be false. As this enquiry is a stage of a judicial proceeding. A has given false evidence.
लागू अपराध
1. न्यायिक कार्यवाही में झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना।
सजा – 7 वर्ष का कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध जमानती, गैर-संज्ञेय है तथा प्रथम श्रेणी के न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।
2. किसी अन्य मामले में झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना।
सजा – 3 वर्ष का कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध जमानती, गैर-संज्ञेय है तथा किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
आईपीसी की धारा 193 में सजा (Punishment) क्या होगी
“मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड” इसको भारतीय दंड संहिता में धारा 193 के तहत परिभाषित किया गया है | यहाँ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 में “मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड” का प्रावधान किया गया हैं | इसके लिए उस व्यक्ति को जिसके द्वारा “ मिथ्या साक्ष्य दिया गया है उसको –
1. न्यायिक कार्यवाही में झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना।
सजा – 7 वर्ष का कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध जमानती, गैर-संज्ञेय है तथा प्रथम श्रेणी के न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।
2. किसी अन्य मामले में झूठा साक्ष्य देना या गढ़ना।
सजा – 3 वर्ष का कारावास + आर्थिक दण्ड।
यह अपराध जमानती, गैर-संज्ञेय है तथा किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
आईपीसी (IPC) की धारा 193 में जमानत (BAIL) का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 में “मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड” के बारे में बताया गया है उस अपराध को CrPC में एक जमानती और गैर – संज्ञेय अपराध बताया गया है | यहाँ आपको मालूम होना चाहिए कि जमानतीय अपराध और होने पर इसमें जमानत मिलने में मुश्किल नहीं आती है ।
मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड के बारे में उपरोक्त वर्णन से आपको आज जानकारी हो गई होगी | भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 में क्या अपराध बनता है कैसे इस धारा को लागू किया जायेगा , क्या सजा होगी ? इन सब के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, साथ ही इसमें जमानत के क्या प्रावधान होंगे ? यदि फिर भी इस धारा से सम्बन्धित या अन्य धाराओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है |
अपराध | सजा | संज्ञेय | जमानत | विचारणीय |
1.न्यायिक कार्यवाही में झूठे सबूत देना या गढ़ना 2. किसी अन्य मामले में झूठे सबूत देना या गढ़ना | 7 साल कारावास+ आर्थिक दंड 3 साल कारावास+ आर्थिक दंड | गैर – संज्ञेय गैर – संज्ञेय | जमानतीय जमानतीय | मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी द्वारा विचारणीय (ट्रायल किया जा सकता) किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय |