आईपीसी धारा 384 क्या है
भारतीय दंड संहिता में विभिन्न अपराधों के लिए अलग अलग धाराओं में प्रावधान करके उनको परिभाषित किया गया है | आज हम भारतीय दंड संहिता की उस धारा के बारे में बात करेंगे जिसमे “किसी व्यक्ति को मॄत्यु या गंभीर आघात देने के भय में डालकर उस व्यक्ति से जबरन वसूली की जाती है इसको ही उद्दापन (Extortion) कहा जाता है, इसको अपराध माना गया है | आज यहाँ इस पेज पर इसके बारे में चर्चा की जाएगी |
भारतीय दंड सहिता (IPC) में उद्दापन (Extortion) को धारा 384 में परिभाषित किया गया है | आज आपको हम यहाँ इस आर्टिकल में यही बताएंगे कि इस अपराध के होने पर भारतीय दंड सहिता (IPC) की धारा 384 किस तरह लागू होगी | यहाँ हम आपको भारतीय दंड संहिता यानि कि IPC की धारा 384 क्या है ? इसके सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे |
इस पोर्टल के माध्यम से आज यहाँ धारा 384 में सजा के बारे में क्या प्रावधान बताये गए हैं, और इसमें कितनी सजा देने की बात कही गई है इन सभी प्रकार के टॉपिकों के बारे में पूर्ण रूप से बात होगी | साथ ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 384 में जमानत के बारे में क्या बताया गया है ? सभी बातों को आज हम विस्तृत रूप से यहाँ जानेंगे, साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर अन्य महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य धाराओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |
IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा ) की धारा 384 के अनुसार :-
उद्दापन के लिए दंड-
“जो कोई उद्दापन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा” ।
S. 384 – “Punishment for extortion”–
“Whoever commits extortion shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, or with fine, or with both”.
लागू अपराध
किसी व्यक्ति को मॄत्यु या गंभीर आघात देने के भय में डालकर उस व्यक्ति से ज़बरदस्ती वसूली करना।
सजा – 3 वर्ष का कारावास या आर्थिक दण्ड या फिर दोनों हो सकते हैं।
यह एक गैर–जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (ट्रायल किया जा सकता) है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
आईपीसी की धारा 384 में सजा (Punishment) क्या होगी
यहाँ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 384 में किये गए अपराध के लिए सजा को निर्धारित किया गया हैं | जो इस प्रकार है – किसी व्यक्ति को मॄत्यु या गंभीर आघात देने के भय में डालकर उस व्यक्ति से जबरन वसूली”, यह अपराध माना जाता है | इसके लिए उस व्यक्ति को जिसके द्वारा ऐसा किया गया है उसको 3 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड या दोनों से दण्डित किया जायेगा| यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
आईपीसी (IPC) की धारा 384 में जमानत (BAIL) का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 384 में जिस अपराध की सजा के बारे में बताया गया है उस अपराध को एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध बताया गया है | यहाँ आपको मालूम होना चाहिए कि संज्ञेय अपराध और गैर-जमानतीय होने पर इसमें जमानत मिलने में मुश्किल आती है क्योंकी यह गैर-जमानतीय और संज्ञेय अपराध है । यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
मित्रों उपरोक्त वर्णन से आपको आज भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 384 के बारे में इस आर्टिक्ल के माध्यम से पूरी जानकारी हो गई होगी इसमें क्या अपराध बनता है कैसे इस धारा को लागू किया जायेगा | इस अपराध को कारित करने पर क्या सजा होगी ? इन सब के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, साथ ही इसमें जमानत के क्या प्रावधान होंगे ? इसकी जानकारी भी दी है | यदि फिर भी इस धारा से सम्बन्धित या अन्य धाराओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है |
अपराध | सजा | संज्ञेय | जमानत | विचारणीय |
किसी व्यक्ति को मॄत्यु या गंभीर आघात देने के भय में डालकर उस व्यक्ति से जबरन वसूली करना। | 3 वर्ष का कारावास या आर्थिक दंड या फिर दोनों दिया जायेगा | संज्ञेय | गैर जमानतीय | किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (ट्रायल किया जा सकता) |
384,67 lagi ho to kisi bhi tarah se compromise ho sakta hai?
384, यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
Compromise only in case of Mutual Understanding …
क्या इसमे समझौता हो सकता है या नही
और अगर जुर्माना हो तो कितना होता है
यह एक गैर–जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय (ट्रायल किया जा सकता) है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
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