गीता पर ही हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे कोर्ट में, रामायण पर क्यों नहीं – जानिए यहाँ दिलचस्प जानकारी


भगवान श्रीराम ने अपने जीवन में झूठ का सहारा कभी नहीं लिया। उनका जीवन एक आदर्श पूर्ण जीवन था परन्तु भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के दौरान विजय पाने के लिए ‘पहले से बनाये हुए आदर्श’ का पालन नहीं किया परन्तु विजय प्राप्त करने के लिए पहले से निर्धारित आदर्शों का सम्मान नहीं किया। फिर क्या वजह है, कि कोर्ट में गीता पर ही हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे रामायण पर क्यों नहीं। आइए इस लेख में हम जानते हैं, कि कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे, रामायण पर क्यों नहीं है |

यहाँ पर आज आपको देंगे एक दिलचस्प जानकारी – गीता पर ही हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे कोर्ट में रामायण पर क्यों नहीं इसके बारे में बताने का प्रयास करेंगे | आज के आर्टिकल में आप जानेगे कि कोर्ट में आखिर गीता पर ही हाथ रखकर कसम क्यों खिलाई जाती है   इन सब पर पूर्ण रूप से चर्चा की गई है | साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर  अन्य महत्वपूर्ण लॉ से सम्बन्धित  बातों को विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से उनके बारे में भी जानकारी  ले सकते हैं |

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गीता पर हाथ रखकर कसम खाने की परंपरा भारत में कब शुरू हुई

आपको जानकारी दे दें कि पत्रकार श्री हेमंत सिंह की एक स्टडी के मुताबिक भारत में मुगल शासकों द्वारा  धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ लेने की परंपरा को शुरू की गई थी, क्योंकि मुगल शासक अपने फायदे के लिए झूठ बोलना, छल-कपट करना, ये सब उनके आदत में थी जिससे भारत के लोगों के बातों पर मुगल लोग कभी विश्वास नहीं करते थे, लेकिन वह इस बात को मानते थे कि भारत के लोग अपने धर्म ग्रंथ पर हाथ रखकर अगर शपथ ले लेते हैं, तो ये फिर झूठ नहीं बोलते ।

धार्मिक पुस्तक पर हाथ रख कर कोर्ट में शपथ लेने का नियम कब बना

मुगलों और उनके समकक्ष शासनकाल तक गीता पर हाथ रखकर शपथ लेने की की परंपरा एक दरबारी परंपरा थी, इसके लिए कोई कानून नहीं बना था परन्तु अंग्रेजों ने इसे कानून में बदल दिया और इंडियन ओथ्स एक्ट, 1873 पास किया और सभी न्यायालयों में पारित कर दिया गया था। इस एक्ट के अनुसार हिंदू धर्म के लोग गीता पर और मुस्लिम संप्रदाय के लोग कुरान पर हाथ रखकर कसम खाते थे। ईसाइयों के लिए बाइबल सुनिश्चित की गई थी |

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क्या आजादी के पश्चात भी न्यायालय में गीता/ कुरान/ बाइबल पर हाथ रखकर शपथ दी जाती थी

न्यायालय में कसम खाने की यह परंपरा स्वतंत्र भारत में 1957 तक कुछ शाही युग की  न्यायालयों, जैसे बॉम्बे न्यायालय में नॉन हिन्दू और नॉन मुस्लिम्स के लिए उनकी धर्म ग्रंथ पर हाथ रखकर कसम खाने की परंपरा चालू थी।

भारत में धर्म ग्रंथ पर हाथ रखकर शपथ लेने का कानून कब से बंद हुआ

भारत में धर्म के अनुसार पवित्र किताब पर हाथ रखकर शपथ लेने की परंपरा 1969 में समाप्त हुई। जब लॉ कमीशन द्वारा अपनी 28वीं रिपोर्ट सौंपी तो भारत में भारतीय ओथ अधिनियम, 1873 में संशोधन करने का सलाह दिया गया और इसके स्थान पर ‘ओथ्स एक्ट, 1969’ लागू किया गया। इस प्रकार पूरे भारत देश में एक समान शपथ कानून पारित कर दिया गया है।

भारतीय कानून की जानकारी

क्या भारत की न्यायालयों में आज भी ईश्वर की कसम खाकर बयान दिए जाते हैं

इस कानून के लागू होने से भारत की न्यायालयों में शपथ लेने की परंपरा के स्वरुप में बदलाव हुआ है और अब शपथ एक सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है। अर्थात अब शपथ को सेक्युलर माना गया है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी और इसाई के लिए अब अलग-अलग किताबों और शपथों को समाप्त कर दिया गया है। अब सभी धर्मो के लिए इस प्रकार की शपथ है;

 “I do swear in the name of God/solemnly affirm that what I shall state shall be the truth, the whole truth and nothing but the truth”.

“मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूँगा।”

यहाँ पर इस बात को बताना जरूरी है कि नए ‘ओथ एक्ट,1969’ में यह भी प्रावधान है, कि यदि गवाह, 12 वर्ष से कम का है, तो उसे किसी प्रकार की शपथ लेने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि ऐसा माना गया है कि बच्चे स्वयं भगवान के रूप होते हैं।

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अदालत में गवाही से पहले शपथ का क्या मतलब है, अगर झूठ बोल दिया तो क्या होगा

वर्तमान समय में न्यायालय में दो प्रकार की शपथ ली जाती है। पहला न्यायाधीश के सामने मौखिक रूप से और दूसरा शपथ पत्र पेश करके। यदि कोई व्यक्ति शपथ लेने के पश्चात झूठ बोलता है तो इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 193 के अनुसार यह कानून अपराध है और झूठ बोलने वाले व्यक्ति को 7 साल की सजा दी जाएगी।

इस सेक्शन में यह भी नियम है, कि जो कोई भी गवाह किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी केस में झूठा प्रमाण या साक्ष्य देगा य किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में प्रयोग किये जाने के लिए झूठा साक्ष्य बनता है तो उसे 7 वर्ष के कारावास और जुर्माने सहित सजा दिया जायेगा। यह अपराध तभी दर्ज कर सकते हैं जब गवाह ने सत्य वचन की शपथ ली हो। अगर वह शपथ नहीं देगा तो शपथ भंग का अपराधी नहीं माना जायेगा।

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गीता की शपथ ही क्यों ली गयी, रामायण की क्यों नहीं

अब हम आते हैं मूल प्रश्न पर। अदालत में गीता की ही शपथ क्यों ली जाती है, रामायण की क्यों नहीं जबकि रामायण ज्यादा प्रसिद्ध धार्मिक पुस्तकें मानी जाती हैं । इसके पीछे लॉजिक यह है, कि रामायण भगवान श्री राम के जीवन का विवरण किया गया है। रामायण से लोग अपने आदर्श जीवन का मार्गदर्शन लेते हैं। रामायण लोगों को आदर्श जीवन के लिए उत्साहित करती है लेकिन ‘गीता’ हिंदुओं का एक ऐसा धार्मिक ग्रंथ है इससे जीवन के लिए मार्गदर्शन बताया गया है। हिंदू धर्म में गीता, इस्लाम में कुरान और क्रिश्चियन में बाइबल ये समान रूप से मानव जीवन को मार्गदर्शन करने वाले धार्मिक ग्रंथ माने जाते हैं।

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आज के इस आर्टिकल में हमने आप को “आखिर गीता पर ही हाथ रखकर कसम क्यों खिलाई जाती है   “ के बारे में विस्तार से जानकारी यहाँ इस पेज पर दी है अगर फिर भी आप के मन में इससे संबंधित कोई प्रश्न हैं तो कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं हम आप के द्वारा पूछे गए प्रश्नो का उत्तर देने का पूरा प्रयास करेंगे |

संविधान क्या होता है

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