आरोप पत्र क्या होता है | प्रारूप (Format) – Charge Sheet Explained in Hindi


Charge Sheet

यदि हम अपराध की बात करे तो हमें अपराध करनें वाले अपराधियों के बारें में अक्सर समाचार पत्रों, टीवी अथवा लोगो द्वारा इसकी जानकारी प्राप्त होती रहती है | हालाँकि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सभी प्रकार के आपराध के लिए सजा का प्रावधान है, परन्तु इसके लिए एक प्रक्रिया है | उस प्रक्रिया के अंतर्गत न्यायलय में अपराध करनें वाले को अपराधी सिद्ध करना होता है |

हालाँकि यह प्रक्रिया काफी लम्बी है, और इस प्रक्रिया के अंतर्गत दोषी को अपराधी सिद्ध करनें में काफी समय लग जाता है| इस प्रक्रिया के अंतर्गत एक प्रक्रिया आरोप पत्र दाखिल करनें की होती है, जो पुलिस द्वारा की जाती है| आरोप पत्र को चार्जशीट भी कहते है| तो आईये जानते है, कि आरोप पत्र या चार्जशीट किसे कहते है ?  

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आरोप पत्र का मतलब (Meaning Of Charge Sheet)

आरोप पत्र को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जो इस प्रकार है-

  • अभियोग-पत्र
  • चार्जशीट
  • दायर-जुर्म
  • प्रभार-पत्र

आरोप पत्र किसे कहते है (What Is Charge Sheet )

किसी प्रकरण में पुलिस द्वारा अपराधी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के बाद उसकी जाँच की जाती है | यदि जाँच के दौरान पुलिस को यह लगता है, कि इस प्रकरण में उसके पास पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं, तो उस केस में मुकदमा चलाने के लिए न्यायालय में आरोप पत्र या चार्जशीट पेश करती है। इसे पुलिस चालान भी कहा जाता है।

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आरोप पत्र का प्रारूपCharge Sheet Format)

पुलिस चार्जशीट, धारा 170 दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 के अंतर्गत पुलिस रिपोर्ट को कहते हैं। इस रिपोर्ट के साथ अभियुक्तों को कोर्ट के समक्ष विचारण (Trial) के लिए प्रस्तुत किया जाता है। चार्जशीट में अपराध के संक्षिप्त विवरण के साथ अभियुक्तों के नाम पते तथा उनके खिलाफ की गई गिरफ्तारी, जमानत, फरार इत्यादि का विवरण होता है। साथ ही अपराध का संक्षिप्त नैरेटिव और उसे कोर्ट में साबित करने के लिए पेश किये जाने वाले गवाह, अभिलेख और अन्य साक्ष्यों के बारें में लिखा जाता है। चार्जशीट के आधार पर कोर्ट में केस का ट्रायल होता है।

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चार्जशीट कितने दिनों में दाखिल होती है (How Many Days Charge Sheet is Filed)

  • पुलिस द्वारा किसी भी प्रकरण में पूरी छानबीनकरने के बादपुलिस अधिकारी सीआरपीसी की धारा-173 में चार्जशीट दाखिल करते हैं।
  • जिस केस में अपराधी को कमसेकम 10 वर्ष की कैद और ज्यादा-से-ज्यादा उम्रकैद या फांसी का प्रावधान हो, उसमें आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर जांच एजेंसी को चार्जशीट दाखिल करनी होती है, अन्यथा आरोपी को जमानत मिल जाती है।
  • इसके अलावा, दूसरे मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी के 60 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होती है। ऐसा न करने पर आरोपी को जमानत दिए जाने का प्रावधान है।
  • आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर पुलिस द्वारा मामले की जांच कराई जाती है। जांच में यदि आरोप सही पाया जाता है तो मुकदमा पंजीकृत होगा। अन्यथा निरस्त कर दिया जाएगा। यह अधिकार जांच अधिकारी को है।
  • जांच एजेंसी की चार्जशीट के बाद अदालत साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लेती है और उन्हें समन जारी करती है। इसके बाद आरोप पर बहस होती है।
  • यदि आरोपी के खिलाफ जांच एजेंसी को सबूत न मिले, तो वह सीआरपीसी की धारा-169 के तहत क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर देती है। अदालत क्लोजर रिपोर्ट में पेश तथ्यों को देखती है और फिर मामले के शिकायती को नोटिस जारी करती है। शिकायती को अगर क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति है तो वह इसे दर्ज कराता है। क्लोजर रिपोर्ट पर जांच एजेंसी की दलीलों को भी अदालत सुनती है।
  • यदि अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत नहीं हैं, तो वह क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लेती है और केस बंद करने का हुक्म देते हुए आरोपियों को बरी कर देती है।
  • क्लोजर रिपोर्ट के साथ पेश तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के बाद अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए साक्ष्य हैं तो वह उसी क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट की तरह मानते हुए आरोपी को समन जारी कर सकती है।
  • यदि अदालत क्लोजर रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होती, तो जांच एजेंसी को आगे जांच के लिए कह सकती है।
  • यदि एक बार क्लोजर स्वीकार होने के बाद भी जांच एजेंसी को बाद में आरोपियों के खिलाफ भरपूर सबूत मिल जाएं, तो दोबारा चार्जशीट दाखिल की जा सकती है, लेकिन एक बार ट्रायल खत्म हो जाए और आरोपी बरी हो जाए तो उसी केस में दोबारा केस नहीं चलाया जा सकता।

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