सीआरपीसी की धारा 116 क्या है | Section 116 CRPC in Hindi


सीआरपीसी की धारा 116 क्या है

दंड प्रक्रिया सहिता में इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांचइसका प्रावधान सीआरपीसी (CrPC) की धारा 116 में  किया गया है | यहाँ हम आपको ये बताने का प्रयास करेंगे कि दंड प्रक्रिया सहिता (CrPC) की धारा 116 के लिए किस तरह अप्लाई होगी | दंड प्रक्रिया सहिता यानि कि CrPC की धारा 116 क्या है ? इसके सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से यहाँ समझने का प्रयास करेंगे | आशा है हमारी टीम द्वारा किया गया प्रयास आपको पसंद आ रहा होगा |

(CrPC Section 116) Dand Prakriya Sanhita Dhara 116 (इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांच)

इस पेज पर दंड प्रक्रिया सहिता की धारा 116 में “इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांचइसके बारे में क्या प्रावधान बताये गए हैं ? इनके बारे में पूर्ण रूप से इस धारा में चर्चा की गई है | साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 116 कब नहीं लागू होगी ये भी बताया गया है ? इसको भी यहाँ जानेंगे, साथ ही इस पोर्टल www.nocriminals.org पर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की अन्य महत्वपूर्ण धाराओं के बारे में विस्तार से बताया गया है आप उन आर्टिकल के माध्यम से अन्य धाराओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी  ले सकते हैं |

सीआरपीसी की धारा 91 क्या है



CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता की धारा ) की धारा 116 के अनुसार :-

इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांच-

(1) जब धारा 111 के अधीन आदेश किसी व्यक्ति को, जो न्यायालय में उपस्थित है, धारा 112 के अधीन पढ़कर सुना या समझा दिया गया है अथवा जब कोई व्यक्ति धारा 113 के अधीन जारी किए गए समन या वारंट के अनुपालन या निष्पादन में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट उस इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांच करने के लिए अग्रसर होगा जिसके आधार पर वह कार्रवाई की गई है और ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता है जो उसे आवश्यक प्रतीत हो।

(2) ऐसी जांच यथासाध्य, उस रीति से की जाएगी जो समन-मामलों के विचारण और साक्ष्य के अभिलेखन के लिए इसमें इसके पश्चात् विहित है।

(3) उपधारा (1) के अधीन जांच प्रारंभ होने के पश्चात् और उसकी समाप्ति से पूर्व यदि मजिस्ट्रेट समझता है कि परिशांति भंग का या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए, या लोक सुरक्षा के लिए तुरंत उपाय करने आवश्यक हैं, तो वह ऐसे कारणों से, जिन्हें लेखबद्ध किया जाएगा, उस व्यक्ति को, जिसके बारे में धारा 111 के अधीन आदेश दिया गया है निदेश दे सकता है कि वह जांच समाप्त होने तक परिशांति कायम रखने और सदाचारी बने रहने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे और जब तक ऐसा बंधपत्र निष्पादित नहीं कर दिया जाता है. या निष्पादन में व्यतिक्रम होने की दशा में जब तक जांच समाप्त नहीं हो जाती है, उसे अभिरक्षा में निरुद्ध रख सकता है : परंतु

(क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कार्यवाही नहीं की जा रही है, सदाचारी बने रहने के लिए बंधपत्र निष्पादित करने के लिए निदेश नहीं दिया जाएगा;

(ख) ऐसे बंधपत्र की शर्ते, चाहे वे उसकी रकम के बारे में हों या प्रतिभू उपलब्ध करने के या उनकी संख्या के, या उनके दायित्व की धन संबंधी सीमा के बारे में हों, उनसे अधिक दुर्भर न होंगी जो धारा 111 के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट हैं।

(4) इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तथ्य कि कोई व्यक्ति आभ्यासिक अपराधी है या ऐसा दुसाहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना स्वच्छन्द रहना समाज के लिए परिसंकटमय है, साधारण ख्याति के साक्ष्य से या अन्यथा साबित किया जा सकता है।

(5) जहां दो या अधिक व्यक्ति जांच के अधीन विषय में सयुक्त रहे हैं वहां मजिस्ट्रेट एक ही जांच या पृथक् जांचों में, जैसा वह न्यायसंगत समझे, उनके बारे में कार्यवाही कर सकता है।

(6) इस धारा के अधीन जांच उसके आरंभ की तारीख से छह मास की अवधि के अंदर पूरी की जाएगी, और यदि जांच इस प्रकार पूरी नहीं की जाती है तो इस अध्याय के अधीन कार्यवाही उक्त अवधि की समाप्ति पर, पर्यवसित हो जाएगी जब तक विशेष कारणों के आधार पर, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश नहीं करता है:

परंतु जहाँ कोई व्यक्ति, ऐसी जांच के लंबित रहने के दौरान निरुद्ध रखा गया है वहां उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही, यदि पहले ही पर्यवसित नहीं हो जाती है तो ऐसे निरोध के छह मास की अवधि की समाप्ति पर पर्यवसित हो जाएगी।

(7) जहां कार्यवाहियों को चालू रखने की अनुज्ञा देते हुए उपधारा (6) के अधीन निदेश किया जाता है, वहां सेशन न्यायाधीश व्यथित पक्षकार द्वारा उसे किए गए आवेदन पर ऐसे निदेश को रद्द कर सकता है, यदि उसका समाधान हो जाता है कि वह किसी विशेष कारण पर आधारित नहीं था या अनुचित था।

सीआरपीसी की धारा 107 क्या है

According to Section. 116 – “ Inquiry As To Truth of Information ”–

(1) When an order under section Ill has been read or explained under section 112 to a person present in Court, or when any person appears or is brought before a Magistrate in compliance with, or in execution of, a summons or warrant, issued under section 113, the Magistrate shall proceed to inquire into the truth of the information upon which action has been taken, and to take such further evidence as may appear necessary.

(2) Such inquiry shall be made, as nearly as may be practicable, in the manner hereinafter prescribed for conducting trial and recording evidence in summons- cases.

(3) After the commencement, and before the completion, of the inquiry under sub- section (1), the Magistrate, if he considers that immediate measures are necessary for the prevention of a breach of the peace or disturbance of the public tranquillity or the commission of any offence or for the public safety, may, for reasons to be recorded in writing, direct the person in respect of whom the order under section 111 has been made to execute a bond, with or without sureties, for keeping the peace or maintaining good behaviour until the conclusion of the inquiry, and may detain him in custody until such bond is executed or, in default of execution, until the inquiry is concluded: Provided that-

(a) no person against whom proceedings are not being taken under section 108, section 109, or section 110 shall be directed to execute a bond for maintaining good behaviour;

(b) the conditions of such bond, whether as to the amount thereof or as to the provision of sureties or the number thereof or the pecuniary extent of their liability, shall not be more onerous than those specified in the order under section 111.

(4) For the purposes of this section the fact that a person is an habitual offender or is so desperate and dangerous as to render his being at large without security hazardous to the community may be proved by evidence of general repute or otherwise.

(5) Where two or more persons have been associated together in the matter under inquiry, they may be dealt with in the same or separate inquiries as the Magistrate shall think just.

(6) The inquiry under this section shall be completed within a period of six months from the date of its commencement, and if such inquiry is not so completed, the proceedings under this Chapter shall, on the expiry of the said period, stand terminated unless, for special reasons to be recorded in writing, the Magistrate otherwise directs: Provided that where any person has been kept in detention pending such inquiry, the proceeding against that person, unless terminated earlier, shall stand terminated on the expiry of a period of six months of such detention.

(7) Where any direction is made under sub- section (6) permitting the continuance of proceedings, the Sessions Judge may, on an application made to him by the aggrieved party, vacate such direction if he is satisfied that it was not based on any special reason or was perverse.

सीआरपीसी की धारा 133 क्या है 

आपको आज  दंड प्रक्रिया संहिता  की धारा 116 “इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांचइसके  बारे में जानकारी हो गई होगी | कैसे इस धारा को लागू किया जायेगा ?  इन सब के बारे में विस्तार से हमने उल्लेख किया है, यदि फिर भी इस धारा से सम्बन्धित या अन्य धाराओं से सम्बंधित किसी भी प्रकार की कुछ भी शंका आपके मन में हो या अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप  कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने प्रश्न और सुझाव हमें भेज सकते है |

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